कोरिया / हजरत बाबा भोलनशाह वली रहमतुल्लाहअले की मजार पर लगने वाले तीन दिवसीय उर्स का आज तीसरा व अंतिम दिन है। आपको बता दे की 10 जून से 12 जून तक चलने वाले सालाना उर्स में देश के कौने – कौने से हजारों लोग इस वर्ष भी चादर चढ़ने यहाँ पहुंचे और बाबा भोलनशाह की मजार पर सच्चे मन से मन्नत मांगी।
कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड में स्थित हजरत बाबा भोलनशाह वली रहमतुल्लाहअले की मजार पर पिछले 46 वर्षो से लगातार 3 दिवसीय उर्स का आयोजन किया जाता रहा है पहले दिन चादर पोशी और बाकी शेष दो दिनों तक यहाँ कब्बाली का भी आयोजन किया जाता है। जिसे सुनने दूर-दूर से लोग हर वर्ष आते है। इस वर्ष भी कव्वली का जोरदार कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें छोटे चाँद कादरी मुंबई से और उनका साथ देने रौनक परवीन मुजफरपुर से पहुंची है।
इस वर्ष भी उर्स के पहले दिन बाजे-गाजे और पटाखों के साथ विशाल जुलुस में हजारों लोगो के उपस्थिति में यादव परिवार के सदस्य द्वारा चादर पोशी की गई और हमेशा की तरह इसके बाद अंजुमन कमेटी सोनहत व अंजुमन कमेटी बैकुंठपुर का चादर मजार में चढ़ाया गया और उसके बाद ही अन्य मन्नतदारो की चादरे चढ़ाई गई है। इस उर्स में समुचा कोरिया और जिले के लोगो के लिए यह सबसे बड़ा मौका रहता है लोग बढ-चढ़ कर इस कार्यक्रम में शिरकत करते है हालाकिं सालाना सम्पन्न्य होने वाले उर्स का कोई दिन – महिना – तारीख मुकर्रर ( निर्धारित ) नहीं है उर्स कमिटी ही गर्मियों के माह में कोई खाश दिन देख कर उर्स कराने का समय मुकर्रर ( निर्धारित ) करते है जिसके बाद ही 3 दिवसीय उर्स सम्पन्न्य होता है। उर्स के आलावा पुरे वर्ष भर बाबा भोलन शाह की माजर पर दूर-दूर से लोग मन्नत मांगने चादर चढाने आते है और माजर पर चादर पोशी पुरे वर्ष भर चलता रहता है और सालाना उर्स के दौरान ही पुराने चादरों को मजार से हटाया जाता है। ऐसी मान्यता है की बाबा भोलनशाह की माजर में आकर चाहे वो किसी भी धर्म का व्यक्ति हो सच्चे दिल से मन्नत मांगता है तो वह अवश्य पूरी होती है, सालाना लगने वाले उर्स में काफी दूर-दूर से लोग अपनी खली झोलिया ले कर आते है और झोलिया भर कर जाते है और शायद यही कारण है की यह लगभग 46 वाँ वर्ष है और बीते 46 वर्षो से लगातार यह मजार और मजार में लगने वाले उर्स पर लोगो का अथाह आस्था कायम है।
उर्स को लेकर माजर परिसर में चादरे, खिलौने, क्राकरी, मनीहारी आदि की दुकानें सजी हुई हैं मजार स्थल को रोशनी से सजाया गया है।
स्थानीय लोगो के जहन में हजरत बाबा भोलनशाह वली रहमतुल्लाहअले और मजार के बारे में कई किवदंतीय मशहूर है जिनमे लोगो का कहना है की कई वर्ष पूर्व सोनहत ग्राम बेलिया निवासी रामदेव यादव को भोलन शाह की सवारी आती थी और फिर एक दिन बाबा भोलनशाह रामदेव यादव के सपने में आये और उसी दौरान रामदेव यादव ने बाबा से एक बच्चे की मन्नत मांगी। मन्नत पूरी होने पर रामदेव यादव ने बाबा बोलन शाह की टूटी-फूटी झोपडीनुमा माजर को पक्का कराया और सबसे पहली चादर उस पर चढ़ाई. तब से लेकर आज तक रामदेव यादव परिवार की ही पहली चादर बाबा बोलन शाह की माजर पर चढ़ती है। कुछ लोगो का यह भी मानना है बाबाभोलनशाह इसी माजर में ही रहा करते थे दिन दुखियो की सदेव मदद भी किया करते थे कई बार उन्हे लोगो ने मजार की स्थान पर ही घोड़े पर सवार देखा था। उर्स की शुरुआत आर यु पांडेय रेंजर के सहयोग से 1973 में पहली बार किया गया था जो आज तक निरंतर जारी है।