रिपोर्ट / दीपक सिंह / 8103629111
00 स्कूल एक समस्याऐ अनेक, जशपुर के बगीचा में शिक्षा का ये है हाल
जशपुर / प्रदेश में चल रहे शिक्षा गुणवत्ता अभियान के बीच सरकारी स्कूलों की दुर्दशा इस अभियान के सार्थकता पर सवाल खड़े करते नजर आ रहे है। मामला उस वक्त और भी गंभीर हो जाता है जब शिक्षा का दीप जलाने के लिये गरीब आदिवासी बच्चे पेड़ के छांव तले बैठे नजर आये और अधिकारी निरीक्षण कर स्कूल की ग्रेडिंग कर चलते बने। गुणवत्ता सुधारने में जुटे सरकारी अमले और जनप्रतिनीधियों की लापरवाही की पराकाष्ठा उस वक्त चरम पर पहुंच जाती है, जब स्कूल के इस दुर्दशा से स्वयं के अनभिज्ञ होने की बात कहते हैं। मामला बगीचा विकास खण्ड के प्राथमिक शाला जोकारी का है। इस स्कूल में आदिवासी बच्चों के साथ विशेष संरक्षित पहाड़ी कोरवा बच्चे भी अध्यनरत है.
पेड़ के छांव तले पढ़ने की मजबूरी –
शासकीय प्राथमिक शाला जोकारी में कक्षो 1 से 5 तक 28 बच्चे अध्ययनरत है। इस स्कूल में यहां के गरीब बच्चों को अक्षर ज्ञान दे कर शिक्षित करने की जिम्मेदारी दो शिक्षकों को दी गई है। लेकिन भवन के अभाव में शिक्षक और विद्यार्थी स्कूल के प्रांगण में स्थित एक आम के पेड़ के नीचे बैठने के लिये मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि स्कूल के लिये भवन नहीं है। दरअसल,इस सरकारी स्कूल के लिये सालों पहले एक भवन का निर्माण कराया गया था। लेकिन वक्त और मौसम की मार झेलता हुआ यह सरकारी भवन खण्डहर में तब्दील हो चुका है। इस जर्जर भवन में पढ़ना तो दूर शिक्षक और बच्चे घुसने से भी डरते हैं। डरे हुये बच्चों को शिक्षक पिछले कई सालों से पेड़ की छांव में बैठा कर पढ़ा रहे हैं। बरसात के मौसम में बच्चों को स्कूल के बगल में स्थित आंगन बाड़ी भवन में आश्रय लेना पड़ता है। लेकिन सामान्य दिनों में भवन में जगह की कमी का वास्ता दे कर आंगन बाड़ी संचालक और विभागीय अधिकारियों द्वारा सरकारी स्कूल के बच्चों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
स्कूल को थमाया सी ग्रेड –
प्रदेश सरकार द्वारा प्रारंभ किये गये बहुचर्चित डा एपीजे अब्दुल कलाम शिक्षा गुणवत्ता अभियान में हो रहे कागजी निरीक्षण की जमीनी हकीकत जोकारी के प्राथमिक शाला की दुर्दशा और इसको दिये गये ग्रेडिंग से ही खुल जाती है। इस स्कूल के ग्रेडिंग के पहले चरण में 16 सितम्बर को आयोजित विशेष ग्राम सभा में 47 अंक के साथ सी ग्रेड दिया गया था। इसके बाद दूसरे चरण में इसकी ग्रेडिंग में सुधार करते हुये 32 अंक दे कर डी ग्रेड दिया गया। अर्थात इस भवनहीन स्कूल में पेड़ के छांव तले शिक्षक और विद्यार्थियों ने शिक्षा के स्तर को ना केवल बनाये रखा,अपितु इसमें सुधार भी किया। ग्रेडिंग के इस तौर-तरीके से अभियान के औचित्य पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है। सबसे बड़ा सवाल है भवन,पानी,बिजली और शौचालय जैसे बुनियादी सुविधा के बिना शिक्षा गुणवत्ता को जांचने के लिये अभियान चलाने और इसमें प्रशासनिक ताकत और जनता के पैसे को झोंकने का औचित्य क्या है?
जनदर्शन में गुहार के बाद भी नहीं बना भवन –
ऐसा नहीं है कि इस भवनहीन प्राथमिक शाला को लेकर पंचायत के प्रतिनीधियों ने आवाज ना उठायी हो। यहां के सरपंच दो जिला मुख्यालय जशपुर में आयोजित होने वालेे कलेक्टर जनदर्शन कार्यक्रम में दो बार आवेदन देकर स्कूल के लिये भवन बनवाये जाने की मांग की थी। सरपंच ने पहली बार जून 2014 में और दूसरी बार 29 सितम्बर को जनदर्शन में आवेदन दिया था। लेकिन जनदर्शन कार्यक्रम और कलेक्टर का आश्वासन भी बच्चों की कठिनाई को दूर करने में असफल रहा। हां कागजों में संबंधित विभाग को सरपंच के आवेदन को प्रेषित कर प्रकरण को निराकृत अवश्य बता दिया गया है। जनदर्शन जैसे शासन के महत्वपूर्ण योजना के कागजी कार्रवाई से यहां के ग्रामीणों में निराशा के साथ आक्रोश भी व्याप्त है।
ढोढ़ी का पानी पीने की मजबूरी –
स्कूल के नाम पर पूरी तरह से मजाक बन चुके जोकारी के सरकारी प्राथमिक शाला में पढ़ रहे बच्चों के साथ यहां के शिक्षकों की कठिनाईयों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पीने के पानी तक की सुविधा नहीं है। प्रशासन ने दो वर्ष पूर्व स्कूल में सौर उर्जा चलित पंप की स्थापना जरूर की थी,लेकिन इस पर चोरो द्वारा हाथ साफ कर दिये जाने से यह बेकार हो गया है। इस पंप के अलावा स्कूल के आसपास ना तो कुंआ स्थित है और ना ही हैंडपंप। मजबूरी में बच्चों को पास के खेत में स्थित ढोढ़ी के गंदे पानी से अपनी ‘यास बुझानी पड़ती है। खेत के पानी से मासूम बच्चों के सेहत पर क्या असर पड़ सकता है,इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
स्कूल की दुर्दशा से अंजान अधिकारी –
बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझते हुये शिक्षा का दीप जलाने में जुटे शिक्षक और विद्यार्थियों की कठिनाईयों के साथ स्कूल की दुर्दशा से शिक्षा विभाग के स्थानीय अधिकारी पूरी तरह से अंजान है। ‘पत्रिका” ने जब स्कूल के दुर्दशा के संबंध में विभाग के अधिकारीयों से जानकारी मांगी गयी तो संबंधितों ने स्कूल की स्थिती से अनभिज्ञ बताया। जाहिर है आज तक अधिकारीयों को कभी इस स्कूल की ओर झांकने तक कि फुर्सत अब तक नहीं मिल पाई है अन्यथा स्कुल की हालत आज ऐसी नही होती जानकारों के मुताबिक गुणवत्ता अभियान में स्कूलों में बुनियादी सुविधा के बजाय पढ़ाने के तौर-तरीकों और पढ़ाने के लिये उपलब्ध संसाधनों को जांचने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन बिना भवन के इस सारे कवायद शिक्षा का स्तर को उठाने के लिये कितना कारगर साबित होगेें,यह गंभीर सवाल है।