रिपोर्ट / राकेश सिंह / 09753486167
00 चिरमिरी में छाया संकट के बादल – 2021 तक मात्र 2940 कामगार बचेंगे
कोरिया / काले हीरे की नगरी कहे जाने वाले चिरिमिरी इलाके में आज स्थायित्त्व का मुद्दा गहराने लगा है, इस विषय में लोगो की राय जरूर अनेक है पर चाहत एक है की किसी तरह से चिरिमिरी की बसाहट बरकरार रहे। यु तो चिरिमिरी को मिनी इंडिया भी कहा जाता है चुकी इस इलाके में भारत के सभी जाति व धर्म के लोग निवास करते है और लोगो में अटुट भाई – चारा का माहौल हमेशा बना रहता है, यही कारण है इस इलाके से लोग दूर नहीं जाना चाहते। आंकड़े बताते है की एक दशक में यहां की आबादी 20 प्रतिशत तक कम हो गई है और यह सिलसिला अभी भी जारी है और इन्ही आकड़ो के मुताबित 2021 तक मात्र 2940 कामगार बचेंगे। अब ऐसे में सवाल यह उठना लाजमी है की कैसे बचेगा चिरिमिरी और इसके लिए जिम्मेदार कौन है SECL प्रबंधन, शासन – प्रशासन या जनता?
चिरमिरी का इतिहास – चिरमिरी क्षेत्र के एतिहासिक पृष्ट भूमि पर नजर डाले तो स्पष्ट हो जायेगा कि चिरमिरी अनिवासियों की बस्ती है क्योकि यहा निवास करने वाले सभी धर्म के लोग बाहर से आये है। चिरमिरी में सभी देश – प्रदेश के लोग निवास करते है। भारत की स्वतंत्रता के पूर्व चिरमिरी कोरिया राज्य का एक हिस्सा था जो अब कोरिया जिले का एक हिस्सा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बरतुंगा पहाड़ी में एक प्राचीन मणी मिलने के कारण इसके समीच स्थित बस्ती का नाम चिरिमिरी पड़ा और जो कालांतर में चिरमिरी हो गया। यहा की अपार खनिज संपदा के दोहन की दृष्टि से सन् 1920 में श्री विभूति भूषण लाहिणी द्वारा प्रथम खदान का चिन्हांकन कर नई चिरमिरी की आधार शिला रखी गई थी। कच्छ से आये श्री रघुराज चावला ने सन् 1927 में छोटी बाजार में लाहिड़ी हायर सेकेन्ड्री विद्यालय की स्थापना किया जो बाद में 27 मार्च 1981 मे शासकीय लाहिड़ी महाविद्यालय के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। इस महाविद्यालय से कई विभूतियाॅ शिक्षा ग्रहण की और देश के बड़े उंचे पदों पर सेवारत हुएं, जिनमें मुख्य न्यायधीश श्री गुलाब गुप्ता का नाम लिया जाता है।
इतिहास में कोयला खान – चिरमिरी खदान सन् 1928 में मेसर्स डागा, कुरासिया खान सन् 1932 में , रेल्वे एन0सी0पी0एच0 खान सन् 1941 में दादा भाई , नार्थ चिरमिरी खान सन् 1946 में श्री के0सी0 थापर, वेस्ट चिरमिरी खान सन् 1950 में इंदर सिंह और कोरिया डोमनहील खान सन् 1962 में एन0सी0डी0 जैसे निजी मालिको ने खदानों को खोलकर राष्टीयकरण के पूर्व श्रमिकों से बधुआ मजदूर जैसे बल पूर्वक कोयले का दोहन किया और धन संपत्ति अर्जित कर यहां से पलायन किया। उन दिनों श्रमिक आंदोलन या श्रमिक संगठन प्रायः नही के बराबर थे। अब एतिहासिक पृष्ट भूूमि के बाद वर्तमान की स्थिति पर जब हम गौर करें तो आप को यह भी साफ दिखाई पड़ेगा की उस समय से आज एस0ई0सी0एल0 अधिकारियों ने क्षेत्र का बस दोहन ही किया है अनाब सनाब और टारगेट पूरा कर दिखाने तथा प्रमोशन की फिराक में शहर के रहवासी श्रमिकों के लिएं बिलकुल भी नही सोचा।
अब जरा आकड़ो के हिसाब से देखिये की कैसे साल दर साल उजड़ रहा है चिरिमिरी 2021 तक मात्र 2940 श्रमिक ही चिरिमिरी की खदानों में रहेंगे। वर्तमान में चिरमिरी एसईसीएल में श्रमिको कि स्थिति – 6380 है।
वर्ष 2016 में 528
वर्ष 2017 में 685
वर्ष 2018 में 499
वर्ष 2019 में 570
वर्ष 2020 में 598
वर्ष 2021 में 560
कुल ———-3440 – 6380 शेष बचे मात्र 2940
6 सालो में चिरमिरी एसईसीएल से 3440 लोग रिटयर हो जायेगे और 6380 में मात्र 2940 श्रमिक ही चिरमिरी एसईसीएल में बचेगे। ऐसे में शहर से एक बाड़ी आबादी कम हो जायेगी और शहर की अर्थ व्यावस्था में एक बडा फेर बदल होगा जिसका जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ शहर के जन प्रतिनिधि ही होगें।
बंद है ये मांइस – 12 साल के अंतराल में कई खदानें बंद हो गईं। एसईसीएल चिरमिरी की कोरिया कालरी, गेल्हापानी, डोमनहिल और अंजन हिल माइंस बंद हो गई।
चालू हैं माइंस – एनसीपीएच, कुरासिया समूह, चिरमिरी अंडर ग्राउंड, चिरमिरी ओपन कास्ट, क्षेत्रीय एएचक्यू, रानी अटारी