इस्लाम धर्म में रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है। रमजान के महीने में मुस्लिम लोग रोजा रखते हुए अल्लाह की इबादत करते हैं। इस बार रमजान की शुरुआत 7 मई से हो रही है। रोजे रखने का मतलब सिर्फ भूखा रहना नहीं होता है, बल्कि यह खुदा ही नहीं खुद की भी इबादत है। रोजे रखने का अर्थ अपनी आदतों और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी होता है।
रमजान के दौरान एक महीने तक रोजे रखे जाते हैं। इस दौरान, कई तरह की बुरी आदतों से भी दूर रहा जाता है। नए चांद के साथ शुरू हुए रोजे अगले 30 दिनों के बाद नए चांद के साथ ही खत्म होते है।
रोजे के दौरान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का ही नियम नहीं है। बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है यानि न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाएं आहत न हों।
हर मुसलमान के लिए जरूरी है कि वह रोजे के दौरान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच खान-पान न करें। यहां तक कि सेक्स या इससे संबंधित बुरी सोच से भी दूर रहने की हिदायत दी जाती है।
रोजे की सबसे अहम परंपराओं में शामिल है सहरी। यह सहर शब्द से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है सुबह। नियम है कि सूर्योदय से पहले उठकर रोजेदार खाना-पीना कर लेते हैं। इसे ही सहरी कहते हैं जिसके बाद सूर्यास्त तक खाने-पीने की मनाही होती है। सूर्यास्त के बाद रोजा खोला जाता है जिसे इफ्तार कहते हैं।
मानसिक आचरण भी शुद्ध रखते हुए पांच बार की नमाज और कुरान पढ़ी जाती है। इस दौरान मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार या मन में किसी के भी प्रति गलत भावना नहीं लानी चाहिए।
इस्लाम धर्म में बताए नियमों के अनुसार पांच बातें करने पर रोजा टूट जाता है। वे हैं – झूठ बोलना, बदनामी करना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना, झूठी कसम खाना और लालच करना।