Tuesday, July 1, 2025
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नाक में तेल डालने से ठीक हो जाती हैं दिमागी बीमारियां और तनाव, काफी फेमस है ये नस्य विधि…

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नई दिल्ली : पूरी दुनिया में दिमाग को शांत करने के कई तरीके प्रचलित हैं लेकिन, आयुर्वेद में मौजूद एक अनोखी विधि भी काफी कारगर मानी गई है. आयुर्वेद में “नस्य” विधि का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें नाक के जरिए औषधीय तेल या अन्य तरल पदार्थ डालकर इलाज किया जाता है. इसे न केवल नाक और साइनस की समस्याओं के लिए बल्कि मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों के उपचार में भी प्रभावी माना जाता है. आयुर्वेद के अनुसार, नस्य विधि मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को शुद्ध करने का एक शक्तिशाली तरीका है, जो मानसिक विकारों, सिरदर्द, और स्मृति संबंधित समस्याओं को ठीक करने में मदद करती है.

आयुर्वेदाचार्य इस विधि की प्रक्रिया और इसके फायदे विस्तार से बताते हैं. विधि पंचकर्म की पांच प्रमुख विधियों में से एक है. इसका उद्देश्य शरीर के ऊपरी हिस्से की शुद्धि करना है. इस विधि में औषधीय तेल, घी या अन्य तरल पदार्थ को नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कराया जाता है. नाक को “द्वार” माना जाता है जिसके जरिए मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र तक औषधियों को पहुंचाया जा सकता है. आयुर्वेद में कहा गया है कि “नासा ही शिरसो द्वारम.” यानी नाक हमारे मस्तिष्क का प्रवेश द्वार है.

नाक और मस्तिष्क का कनेक्शन : आयुर्वेद के अनुसार, नाक का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है. नाक के माध्यम से डाले गए औषधीय तेल मस्तिष्क के उन हिस्सों तक पहुँचते हैं जो तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करते हैं. इससे मानसिक विकार, तनाव और अन्य मस्तिष्क संबंधी समस्याओं का इलाज किया जा सकता है.

तंत्रिका तंत्र को संतुलित करना : नस्य विधि का मुख्य उद्देश्य तंत्रिका तंत्र को संतुलित करना है. इसमें उपयोग किए गए तेल तंत्रिकाओं को पोषण देते हैं और उन्हें स्वस्थ रखते हैं. इसके परिणामस्वरूप मानसिक शांति और स्पष्टता प्राप्त होती है.

वात दोष को नियंत्रित करना : आयुर्वेद में तीन दोष होते हैं, जिनका संतुलन स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है. नस्य विधि विशेष रूप से वात दोष को नियंत्रित करने में मदद करती है, जो मानसिक विकारों और तनाव का मुख्य कारण होता है.

नस्य विधि की प्रक्रिया

तैयारी : नस्य विधि को करने से पहले शरीर और मन को शांत और स्थिर करना आवश्यक होता है. इसके लिए व्यक्ति को एक आरामदायक स्थिति में बैठाया जाता है. सिर को थोड़ा पीछे की ओर झुकाकर बैठाया जाता है, ताकि नाक के मार्ग से तेल आसानी से मस्तिष्क तक पहुँच सके.

तेल का चयन : नस्य विधि के लिए विशेष प्रकार के औषधीय तेलों का उपयोग किया जाता है. ये तेल आयुर्वेदाचार्य द्वारा व्यक्ति की समस्या और दोष के अनुसार चुने जाते हैं. सामान्यतः तिल का तेल, अनुतैल, या ब्राह्मी घृत जैसे औषधीय तेलों का प्रयोग किया जाता है.

तेल डालना : नाक की दोनों नासिका छिद्रों में 2 से 5 बूंद तेल डाला जाता है. इसके बाद व्यक्ति को धीरे-धीरे सांस लेने और तेल को अंदर खींचने के लिए कहा जाता है.

आराम और मालिश : तेल डालने के बाद व्यक्ति को कुछ मिनटों तक आराम करने की सलाह दी जाती है. साथ ही सिर और गर्दन की हल्की मालिश की जाती है, जिससे तेल आसानी से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र तक पहुँच सके.

शुद्धिकरण : तेल डालने के बाद, व्यक्ति को हल्के से नाक और साइनस को साफ करने के लिए कहा जाता है. इससे शेष तेल और विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं.

क्या है नस्य विधि के फायदेनस्य विधि मस्तिष्क को पोषण देती है, जिससे चिंता, अवसाद, तनाव, और अनिद्रा जैसी मानसिक समस्याओं में सुधार होता है. इस विधि का उपयोग स्मृति शक्ति बढ़ाने और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को सुधारने के लिए भी किया जाता है. नस्य विधि माइग्रेन, साइनसाइटिस, और अन्य प्रकार के सिरदर्द में राहत प्रदान करती है.नस्य विधि तंत्रिका तंत्र को मजबूत करती है और न्यूरोलॉजिकल विकारों का इलाज करती है. नस्य विधि सांस संबंधी समस्याओं जैसे नाक बंद, साइनस, और एलर्जी में भी फायदेमंद होती है.

क्या नस्य विधि सुरक्षित है?

राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय नगर बलिया के प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र यादव बताते हैं कि नस्य विधि को प्रशिक्षित आयुर्वेद चिकित्सक के निर्देशन में किया जाना चाहिए. गलत तरीके से या बिना सही मार्गदर्शन के नस्य विधि का उपयोग करने से समस्याएं हो सकती हैं. यदि व्यक्ति को नाक, साइनस, या श्वसन तंत्र से संबंधित कोई गंभीर समस्या है, तो इस विधि को अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

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