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प्रयागराज महाकुंभ: शाही स्नान की जगह अब ‘अमृत स्नान’ और ‘पवित्र स्नान’ का प्रयोग

प्रयागराज।प्रयागराज में 2025 में आयोजित होने वाले महाकुंभ के आयोजन से जुड़ा बड़ा निर्णय लिया गया है। ऐतिहासिक रूप से महाकुंभ के दौरान होने वाले विशेष स्नानों को ‘शाही स्नान’ कहा जाता था, लेकिन अब इन स्नानों को ‘अमृत स्नान’ और ‘पवित्र स्नान’ के रूप में जाना जाएगा। यह बदलाव कुंभ के आयोजकों और धार्मिक संगठनों की आपसी सहमति से हुआ है।

क्या है शाही स्नान और इसका महत्व?

महाकुंभ और अर्धकुंभ के दौरान गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाला ‘शाही स्नान’ हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। शाही स्नान का पहला अवसर अखाड़ों और साधु-संतों के लिए आरक्षित होता है। इसे कुंभ का सबसे प्रमुख और पवित्र स्नान माना जाता है, और इसमें भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु संगम तट पर एकत्रित होते हैं।

मकर संक्रांति, बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर होने वाले स्नानों को पहले ‘शाही स्नान’ के रूप में संबोधित किया जाता था। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

क्यों बदला गया नाम?

नाम बदलने के पीछे प्रमुख उद्देश्य आयोजन को और अधिक समावेशी बनाना और इसे हर श्रद्धालु के लिए समान रूप से पवित्र अनुभव के रूप में प्रस्तुत करना है। ‘शाही स्नान’ शब्द से जहां एक विशेष वर्ग (अखाड़ों और साधु-संतों) को प्राथमिकता मिलती थी, वहीं ‘अमृत स्नान’ और ‘पवित्र स्नान’ जैसे शब्द व्यापकता और आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं।

आयोजकों का मानना है कि यह परिवर्तन महाकुंभ के महत्व और इसकी पवित्रता को बनाए रखते हुए एकता और समरसता का संदेश देगा। इन नए नामों का प्रयोग मकर संक्रांति, बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि जैसे प्रमुख स्नानों के लिए किया जाएगा।

धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव

धार्मिक संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उनका मानना है कि ‘अमृत स्नान’ और ‘पवित्र स्नान’ जैसे शब्द अधिक आध्यात्मिक हैं और कुंभ मेले की वैश्विक छवि को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

अखाड़ा परिषद के प्रमुख ने कहा, “यह बदलाव न केवल कुंभ की परंपराओं का सम्मान करता है, बल्कि इसे आधुनिक संदर्भ में अधिक प्रासंगिक भी बनाता है। यह हर श्रद्धालु के लिए समानता का संदेश देता है।”

महाकुंभ 2025 की तैयारियां

महाकुंभ 2025 के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। यह आयोजन दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। प्रशासन ने गंगा की सफाई, यातायात व्यवस्था, श्रद्धालुओं के ठहरने और सुरक्षा इंतजामों पर विशेष ध्यान दिया है।

इस बार ‘अमृत स्नान’ और ‘पवित्र स्नान’ जैसे शब्दों का उपयोग न केवल धार्मिक आध्यात्मिकता को बढ़ावा देगा, बल्कि महाकुंभ को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान भी देगा।

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