कोरिया / चिरमिरी डेवलपमेंट सोसायटी ने एक संयुक्त हस्ताक्षरित ज्ञापन महापौर के. डोमरु रेड्डी को देकर अविलम्ब चिरमिरी नगर पालिक निगम की सामान्य सभा की एक विशेष बैठक बुलाकर मालवीय नगर के नामकरण में पुनर्विचार करने की मांग की है। इस संयुक्त हस्तक्षारित ज्ञापन में चिरमिरी डेवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष भागवत प्रसाद दुबे व सचिव मनोज जैन ने संयुक्त हस्ताक्षर किया है।
सोसायटी ने अपने ज्ञापन में कहा है कि बीते 10 सितंबर को सम्पन्न हुई चिरमिरी नगर पालिक निगम की सामान्य सभा की बैठक में मालवीय नगर का नाम बदलकर दादू लाहिड़ी नगर किये जाने से हम सब स्तब्ध और क्षुब्ध है। दोनों महापुरुष दादू लाहिड़ी और रतनलाल मालवीय हमारे लिए सम्माननीय है। लाहिड़ी जी की स्मृति में चिरमिरी नगर पालिक निगम द्वारा चिरमिरी के प्रवेश द्वार में दादू लाहिड़ी जी की आदमकद मूर्ति लगाई गई है जो स्वागतयोग्य निर्णय है। मालवीय नगर का नाम चिरमिरी साडा के समय से स्थापित था जिसे इतने वर्षों बाद बदला जाना एक गलत परम्परा की शुरुआत होगी।
सोसायटी ने अपने ज्ञापन में आगे कहा है कि पार्षदों को रतन लाल मालवीय जी के चिरमिरी को दिए योगदान के बारे में ठीक ढंग से बताया नही गया, शायद इसीलिए उन्होंने ऐसा निर्णय लिया। रतनलाल मालवीय जी का चिरमिरी के लिए योगदान अद्वितीय है जिसे भुलाया नही जा सकता। कोरिया रियासत के भारत में विलीनीकरण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। पुरे भारत में व्याप्त गोरखपुरी प्रथा को खत्म करने के लिए उन्होंने चिरमिरी में 85 दिनों का अनोखा सत्याग्रह किया जिसके बाद पूरे देश में यह प्रथा समाप्त हुई। मालवीय जी संविधान सभा के सदस्य थे और चिरमिरी से पहले व्यक्ति थे जो राज्यसभा के सदस्य थे तथा छतीसगढ़ के केंद्र में बनने वाले पहले मंत्री थे। उन्ही के रिपोर्ट के आधार पर केंद्र में मंत्री रहे डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने एनसीडीसी की स्थापना की। चिरमिरी का रीजनल हॉस्पिटल और मनेनद्रगढ़ का सेन्ट्रल हॉस्पिटल उन्ही की देन है।
सोसायटी ने अपने ज्ञापन में आगे कहा है कि विभूति भूषण लाहिड़ी, रतनलाल मालवीय, नरसी भाई पटेल के साथ ही कई अन्य महापुरुषों ने चिरमिरी के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया है जिसे भुलाया नही जा सकता। सोसायटी ने महापौर के. डोमरु रेड्डी से मांग की है कि वे अविलम्ब सामान्य सभा की विशेष बैठक बुलाकर एक संशोधन प्रस्ताव पारित कर मालवीय नगर का नाम उसके मूल स्वरूप में रहने दे तथा एक गलत परम्परा की शुरुआत होने से रोके। यदि एक बार इस गलत परंपरा की शुरुआत हो गई तो फिर हमारी आने वाली पीढ़ी चिरमिरी में अपना जीवन न्योछावर कर योगदान देने वाले महापुरुषों के बारे में जानने से वंचित रह जायेगी।