धमतरी / मासूम उम्र में बड़ी सोच और दुनिया को देखने का नजरिया हौसले से भरा। यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं, बल्कि मगरलोड के ग्राम गिरौद की दो बहनों की सच्चाई है। 10 वर्षीय कुमारी बुधेश्वरी और 15 वर्षीय कुमारी कल्याणी वैसे तो स्कूल में पढ़ती हैं। लेकिन इन दोनों ने जो कर दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। घास भूमि में बने घर में शौचालय बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन से पात्रता नहीं होने पर पंचायत ने उनकी तंग हालत देख 3000 रूपए 14 वें वित्त से दिया। इतनी राशि से केवल प्लींथ स्तर तक सीट लगाकर शौचालय बनाया गया। अब बात आई कि आगे इसका उपयोग किस तरह से किया जाए ? जहां पूरे जिले में शौचालय बनाने और गांव-शहर को खुले में शौचमुक्त करने के लिए अभियान चल रहा, वहां पैसे की कमी से अभियान में अपनी भागीदारी को नकारात्मक होता देख दोनों बहनों ने ठाना कि वे खुद घर में रखे ईंट से जुड़ाई कर अपने शौचालय की दीवार को ऊंचा और आत्म सम्मान की रक्षा करेंगी।
दोनों ने अपने अप्रशिक्षित हाथों से ईंट जोड़ा और 5 फीट ऊंचा दीवार खड़ा कर लिया। बच्चियों की मेहनत और लगन से तैयार शौचालय की दीवार देख मजदूरी करने वाली उनकी मां श्रीमती पांचोबाई काफी गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। वे बताती हैं कि उनके पति रामस्वरूप साहू जो कि रिक्शा चलाते थे, 8 साल पहले चल बसे। परिवार में पीछे रह गईं वे और उनकी दो मासूम बच्चियां। घर में शौचालय नहीं होने की वजह से वे सब बाहर जाती थीं, लेकिन बच्चियों द्वारा शौचालय का दीवार बना लेने से श्रीमती पांचोबाई काफी खुश हैं। वे कहती हैं कि अब उनके मान-सम्मान और सेहत को गंदगी की वजह से कोई खतरा नहीं। वाकई इन बच्चियों के जज्बे ने इस सोच को चरितार्थ कर दिया है कि ’जहां सोच वहां शौचालय’।
ज्ञात हो कि मगरलोड के इस गांव गिरौद की जनसंख्या 1800 है। यहां कुल 350 परिवार निवासरत हैं, उन्हीं में से एक परिवार श्रीमती पांचोबाई का भी है।
दो बहनों के जज्बे ने ’जहां सोच वहां शौचालय’ की कहावत को किया चरितार्थ
