Monday, June 30, 2025
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नदी के पत्थरों को तराश कर देता है मूर्तरूप, तराश अदभुत कला में माहिर है संतोष

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रिपोर्ट / विजय शर्मा / 09424276400
पुरे प्रदेश में अपनी तरह की अनूठी कला में दक्ष है। दहिकेंगा का कलाकार संतोष नाग नदी से चिकने पत्थर खोज कर फिर उस पर मोम की ढलाई करने के बादल नाम मात्र का पितल पिघला कर डालने के बाद तैयार होती है बेहतर मुर्तीया पुरे प्रदेश में नहीं होती पत्थरों के उपर पितल ढाल मुर्तियों की ढलाई।

कोंडागांव / कोंडागांव जिला मुख्यालय से मात्र 15 किमी दूर एनएच 30पर बसे गांव दहिकोंगा के संतोष नाग पिछले पांच वर्षो से राक ढोकरा कला में पुरे प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना चुका है। नदी से चिकने पत्थरों पर पितल पिघला कर अलग-अलग मूर्तियां तैयार करते हर पत्थर से एक तरह की अलग मूर्ति तैयार होती ह। जेा दोबारा नहीं बनती ये खासितय है। इस कला की ।

महाराष्ट्र से सिखी कला – संतोष नाग की शिक्षा बीए स्नातक है। उन्होंने बताया कि मै पहले ढोकरा कला बेल मेटल की मूर्तियां बनाता था महाराष्ट में पत्थरों पर कलाकृति देख इसे सिखने की ललक एैसी जागी अब मैेें यही राॅक ढोकरा कला की पत्थर पर मूर्तियां तैयार करता हूं जो लोग दिल्ली बाम्बे से पहले मेरे यहां बेल मेटल की मूर्तियां को लेने आते थे वो अब इसी पत्थर की मुर्तियो को बेहतर दाम दे कर घर से ही ले जा रहे है और अब मुर्ति तैयार होने मे कम समय लगता है और मुझे कीमत भी अच्छी मिलती है। क्योकि दूसरी जगह ये मुर्तिया बनती नही है। अभी तक मै 40 हजार रुपए मे पत्थर मे पितल की ढ़लाई किया हाथी नन्दी बेच चुका हु।
परिवार के बच्चे भी करते है मदद – इसी कला की मदद से अपने पु़त्र ऋकेष 7वी और ऋचा 6वी को अंग्रेजी माध्यम के स्कुल मे बेहतर शिक्षा दे रहे है बच्चे भी उनकी इस कला मे साथ देते है, अब बच्चे छुटीयों मे घुमने नही बल्की अपने पिता संतोष के साथ नदी मे पत्थर को तरासने में सहयोग करते है।
DSCN2233किलो मे नही बिकती ये कला – आम तौर पर हस्त शिल्प विकास बोर्ड पितल की मुर्तियों को 400 से 500 किलो की दर शिल्पकारों से खरीदकर आगे बेचता है। मगर इस राक ढोकरा कला की मुर्तियों में 95/ प्रतिशत पत्थर और 5 प्रतिशत ही पितल होता है। फिर भी इसके खरीददार इस कला की खुबसुरती देख किलो नही पंसद के आधार पर मुह मांगा दाम दे खरीद लेते है।
बी.के. साहु प्रबंधक हस्तशिल्प बस्तर संभाग – आपके माध्यम से इसका पता लगा है की पत्थर पर पीतल की ढलाई कर मूर्ति बनाने की कला भी है। यह मेरी जानकारी में अभी तक नहीं है। इसे दुलर्भ कलाकारी में माना जा सकता है। अगर ये कलाकार अपनी कृतियों को हमें देना चाहे तो हम इसके विपणन में उनकी पूरी मदद करेगे और अच्छी कीमत दिलाने पूरा प्रयास करेगे।

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