00 दर्जनों जायज उदाहरण और कारणों से दिखाया महापौर को अाईना
00 शहर के 50 लोगों ने संयुक्त हस्ताक्षरयुक्त आवेदन दिया महापौर को
00 दिल्ली सरकार तक का दिया हवाला
00 राज्य सरकार का पेयजल मे नही अाता कोई खर्च
00 200 रू जलकर का शहर मे नही है कोई मतलब
कोरिया / चिरमिरी निवासी आरटीआई कार्यकत्र्ता राजकुमार मिश्रा के नेतुत्व मे शहर के द्रजनो लोगों के द्वारा एक अभियान चलाकर संयुक्त हस्ताक्षर से चिरमिरी निगम के महापौर को एक अनोखा पत्र लिखकर मांग किया है कि चिरमिरी में पेयजल पर राज्य सरकार का कोई खर्च नही है इस कारण चिरमिरी की जनता को निःशुल्क पेयजल दिया जाय।
चिरमिरी शहर के नामदज 50 लोगों ने नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा-25 का उल्लेख करते हुए चिरमिरी निगम के महापौर को एक पत्र लिखा है। नागरिकों के द्वारा इस पत्र में लिखा गया है कि छ0ग0 शासन द्वारा दिनांक – 14.01.2011 को अधिसूचना जारीकर प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में घरेलू जलकर की दर 200/- रू. प्रतिमाह निर्धारित कर दिया गया है। जलकर का यही दर चिरमिरी निगम में भी लागू है। प्रदेश के बड़े नगर निगम जैसे – रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, कोरबा, रायगढ़, दुर्ग आदि में दिन में दो बार पानी दिया जाता है जबकि चिरमिरी निगम द्वारा दो दिनों में एक बार दिया जाता है। फिर भी 200/- रू. प्रतिमाह की ही मांग की जा रही है जो नाजायज होकर हमारे साथ अत्याचार है। इसके अतिरिक्त चिरमिरी निगम के काफी लोगों के पास नल कनेक्शन तक नही है। चिरमिरी निगम का अधिकत्तम भू-भाग एसईसीएल को लीज पर दी गयी है। जिस पर एसईसीएल कोयला उत्खनन करती है और सरकार को लीज और कोयले का राॅयल्टी देती है। यह राशी करोड़ों रू. सालाना होता है और निगम चिरमिरी को संपत्तिकर, समैत्तिकर व कोयले का निर्यात कर के रूप में राशी प्रदान करती है जो वर्तमान वित्तिय वड्र्ढ में 5 करोड़ रू. से अधिक की राशी है, इतनी बड़ी राशी प्रदेश के अन्य बड़े निगमों से सरकार को प्राप्त नही होती। एसईसीएल चिरमिरी द्वारा कोयला उल्खनन में ब्लास्टिंग से चिरमिरी क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्त्रोत नष्ट हो गये। जिसकी क्षति हम आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। सरकार और निगम चिरमिरी के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है। प्रदेश के अन्य निगमों में पेयजल पर छ0ग0 शासन/निगम का जल के परिशोधन, ब्लीचिंग, आदि पर बड़ी राशी खर्च होता है जबकि चिरमिरी में पेयजल पर शासन/निगम कोई खर्च नही है। पेयजल के लिए चिरमिरी एसईसीएल, तात्कालिक म.प्र. सरकार से दिनांक – 31.08.1981 को कोलकाता में हुए अनुबंध के अनुसार पीएचई को अपने राजस्व वेलफेयर बजट से राशी प्रदान करती है जो वर्तमान वित्तिय वर्ष में 2.5 करोड़ रू. है। इस राशी से पूरे निगम को निःशुल्क पेयजल प्रदाय किया जा सकता है जबकि इस राशी से चिरमिरी पीएचई के अधिकारी/कर्मचारियों का वेतन, पेयजल का परिशोधन, ब्लीचिंग, आदि किया जाता है। इसके विपरीत निगम द्वारा हम आम जनता से 200/- रू. प्रतिमाह वसूला जा रहा है। हमारे अतिरिक्त 20 फिसदी काॅलरी कर्मचारियों को भी शुद्ध पेयजल नही मिलता वे अपना पेयजल की व्यवस्था स्वतः करते है।
दिल्ली सरकार अपने करीब 9 लाख नागरिकों के लिए 20 हजार लीटर मासिक (666 लीटर प्रतिदिन) पानी निःशुल्क देती है, पष्चिम बंगाल सरकार कोलकाता वासियों को निःशुल्क जल प्रदान करती है। समाजसेवी संगठन आदि अपने नीजि खर्च पर गर्मियों में लोगो को पीने का पानी देती है। फिर भी चिरमिरी क्या अपने कुछ सौ नागरिकों को पीने का पानी नही दे सकती ? निगम स्वायत संगठन है वो जनता के हित में अंतरिम कार्यवाही स्वतः कर सकती है। आगे इस पत्र में शहर के आम नागरिक मांग की है कि उक्त तथ्यों को संज्ञान मे लेकर विधिवत कार्यवाही करते हुए तात्काल और अविलंब आम जनता के हित में पेयजल निःशुल्क प्रदान कर हमें अनुग्रहित करें।
इन प्रमुख लोगो ने लिखा पत्र –
आरटीआई कार्यकत्र्ता राजकुमार मिश्रा, राजेन्द्र कुमार राठौर, जगदीश कुमार सेठी, उपेंद्र कुमार जैन, राजेंद्र अग्रवाल, जसवंत पढ़ियार, चंद्र कुमार जैन, शाताराम, पारस चक्रवती, रामानुज अग्रवाल, मानिक भद्रा, तापस चटर्जी, मुकेश मित्तल, लियाकत अली, भरत मिश्रा, भरतेश जैन प्रषांत देवलाथ, संतोड्ढ अग्रवाल, अंकुर जैन आदि नागरिकों ने दिया है। 

बड़ा सवाल –
अब देखना है कि जनता के इस मांग को महापौर कब तक पूरा कर पाते है और आम जनता के इस मुलभूत सुविधा की पहली प्राथमिकता निःशुल्क पेयजल को करा पाता है या नही।
