रिपोर्ट / सोनु केदार / 09575250009………….
00 शिक्षाकर्मी आलोक कुजूर की रोचक कहानी
00 प्रशासन ने नही ली इसकी कोई सूध
00 तीन महिनों से नहीं मिला वेतन
00 6 साल तक गुहार लगाने के बाद उठाया कदम
कोरिया / सरकार की हर योजना का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने दावा सरकार करती है लेकिन ऐसा होता नही। दरअसल अपनी परेशानी के साथ साथ जब और लोगों को होने वाली दिक्कतों का आभास एक दिव्यांग शिक्षक को हुआ तो उसने समस्या से खुद ही निपटने का बीड़ा उठा लिया। ऐसा नही कि उसने और लोगों से मदद नही मांगी हो, बल्कि कई लोगों से मदद की गुहार के बाद भी उसे निराशा ही हांथ लगी। इतना ही नही लगातार तीसरे साल समस्या के खुद समाधान करने के दौरान बीते लंबे समय मे प्रशासन ने इसकी कोई सूध नही ली।
यह पूरा मामला छिदडांड की कच्ची सड़क का है। उक्त सड़क से होकर रोजाना पेशे से शिक्षाकर्मी आलोक कुजूर गुजरते है। दिव्यांग होने की वजह से जाहिर सी बात है कि आलोक को रोजाना कई तरह की दिक्कते पेश आती होंगी। आलोक जिस बखूबी अंदाज मे रोजमर्रा की दिक्कतों को हंसते हुए सहज तरीके से अपनाता है और हर चुनौती को पूरा करने का माद्दा रखता है उसी जोश के साथ आलोक छिदडांड की इस कच्ची सड़क की मरम्मत का कार्य भी कर रहा है। छिदडांड की इस कच्ची सड़क से आलोक अपनी स्कूटी पर सवार होकर रोजाना अपने स्कूल आनी नवापारा जाता है। बरसात के इस मौसम मे जहां एक ओर कई सड़कों का बुरा हाल है तो वहीं निर्माणाधीन न्यायालय भवन के बगल से होकर गुजरने वाली इस सड़क पर बैंक ट्रेनिंग सेंटर के पास पुलिया के समीप से होकर गुजरना भी किसी खतरे से कम नही। उक्त सड़क से रोजाना ग्राम आनी, उरूमदुग्गा, पटना, मुरमा सहित आस पास के कई क्षेत्रों के लोग आवागमन करते है इसके साथ ही कई स्कूल बसें भी यहां से होकर गुजरती है। उक्त सड़क मे कीचड़ और गड्ढे होने की वजह से जहां आम लोगों को कई दिक्कते होती है तो वहीं कई बार तो स्कूल बसें सड़क के इन कीचड़ भरे गड्ढों मे फस जाती है। आलोक ने अपने साथ साथ अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों का ख्याल करते हुए बीते दो सालों के बाद इस तीसरे साल भी खुद के खर्चे पर सड़क की मरम्मत का कार्य करा रहा है। आलोक की माने तो उसकी इस मुहिम मे शिशु मंदिर छिदडांड के प्राचार्य भी आलोक की मदद कर रहे है।
गौरतलब है कि उक्त सड़क पीडब्ल्यूडी विभाग की है, जहां से बाईपास सड़क प्रस्तावित है। लेकिन एक दिव्यांग की इस जनहितकारी मुहिम मेे न तो प्रशासन को ही दिलचस्पी है और न ही अन्य कोई समाज सेवी संगठन ही आलोक के इस जजबे को सहयोग करने ही सामने आया है।
आलोक कुजूर (शिक्षाकर्मी) – शासन प्रशासन अगर इस ओर ध्यान देता तो सड़क की मरम्मत खुद कराने की जरूरत ही नही पड़ती। मुझे तीन महिनों से वेतन भी प्राप्त नही हुआ है जैसे तैसे करके मरम्मत के लिये मुरूम गिरवाया हूं क्योंकि सड़क के खराब होने से मुझे जहां एक ओर दिक्कत होती है तो वहीं अन्य लोगों के साथ-साथ स्कूली बच्चों को भी आने जाने मे परेशानी होती है। सिस्टम का क्या कहें मै विकलांग हूं लेकिन लगातार 6 साल तक गुहार लगाने के बावजूद भी इसी सिस्टम ने मुझे एक बैसाखी नही दिलाई। व्यवस्थाओं पर समस्या हावी थी इन्ही सब को देखते हुए सोंचा कि खुद ही समस्या का समाधान किया जाये।
एस प्रकाश (कलेक्टर) – सड़क पीडब्ल्यूडी विभाग की है। समय-समय पर विभाग इसकी मरम्मत कराता रहता है अगर कोई मरम्मत करा रहा है तो यह अच्छी बात है लेकिन आपने संझान मे लाया है मै इसे दिखवाता हूं।
