कोरिया / बच्चों को सरक्षण देने का दम भरने वाली सरकार के दावे उस वक्त खोखले नजर आते है जब आप बच्चों को पेट भरने के लिएं मजदूरी करते सड़कों पर देखते है जरा गौर से देखिएं इन तस्वीरों में कैद मासूमों के नन्हे हाथों से कैसे कचड़े की ढ़ेर में अपनी जिंदगी तलाश कर रहे हैं।
बैकुंठपुर नगर पालिका के गन्दी जगहों में कचड़े की ढ़ेर कबाड़ बिनना इन बच्चों के लिए एक सहारा है इनके जीवन यापन का। कचडों में से कबाड़ इकठ्ठा कर के शहर के कबाडियों को बेचने के एवज में जो पैसा इन्हें मिलता है उससे इनका पेट भरता है। कोई स्थाई ठौर-ठिकाना नही होने के कारण रात खुले असमान के निचे गुजार देते हैं और दुसरे दिन फिर से जीने के जद्दो जहद में भीड़ जाते हैं। जब हमने इनसे इनके पढाई -लिखाई के बारे में पूछा तो बच्चो ने बताया की य़े पढना तो चाहते हैं और कभी – कभी स्कुल भी जाते है पर गरीबी के कारण इन्हें ऐसा करना पड़ता है।
आजादी के 60 साल बीत चुके है लेकिन हमारे देश का भविष्य आज भी सड़को में रद्दी बिनने का काम कर रहा है बचपन से ही गरीबी की मार झेल रहे इन बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य आज भी सरकार के लिएं चुनौती बना हुआ है सरकार इन बच्चों के लिएं चाहे जितना भी कानून बना ले लेकिन जब तक कानून के रखवाले अपने काम को ईमानदारी से नही करेगे तब तक इन बच्चों के भविष्य में सुधार नही आ सकता चाहे हम कितने भी तरक्की कर ले पर कही ना कही इन बच्चों को देखने के बाद भारत की असल नीव का पता चलता है।
