बस्तर / आज तक हमनें पुलिस के जवानों को हमेशा राजनीतिक दलों या अन्य संगठनों की तरफ से किए जाने वाले पुतला दहन कार्यक्रम को रोकते हुए देखा और सुना है। लेकिन ये स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवत: पहला मौका होगा जब छत्तीसगढ़ पुलिस के सहायक आरक्षकों ने बस्तर संभाग में रैली निकालकर नक्सलियों का समर्थन करने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं और पत्रकारों के पुतले जलाए और अपना विरोध जताया।
बस्तर के ताड़मेटला, तिम्मापुर और मोरपल्ली गांवों में आदिवासियों के 252 घर जलाने और बलात्कार के आरोपों से घिरी पुलिस ने सोमवार को बस्तर क्षेत्र के जिले जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और कांकेर में सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के पुतले जलाए। ये पहला मौका है कि छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने किसी राजनीतिक पार्टी की तरह हिमांशु कुमार, बेला भाटिया, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, आदिवासी नेता मनीष कुंजाम, सोनी सोरी, वकील शालिनी गेरा और पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम के पुतले जलाए।
जंगल में माओवादियों से दो-दो हाथ कर रहे जगदलपुर जिले के सहायक आरक्षक सोमवार को जगदलपुर की सड़कों पर कुछ अलग तरह का प्रदर्शन करते नजर आए. पुतला दहन से पहले सहायक आरक्षकों ने पुलिस लाइन से बाकायदा एक रैली निकाली और सामाजिक कार्यकर्ताओं को माओवादी समर्थक बताते हुए नारेबाजी की। लोगों का कहना था कि इस रैली को देखकर ऐसा लग रहा है कि ये पुलिस के सहायक आरक्षक नहीं, किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता हैं।
ये पुलिस जवान अपने साथ एक वाहन में मनीष कुंजाम, नंदनी सुंदर, बेला भाटिया, हिमांशु कुमार, सोनी सोरी जैसे समाजसेवियों और राजनीतिक दलों के नेताओं के पुतले लेकर कोतवाली चौक पहुंचे। यहां बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए इन जवानों ने नक्सलवाद के खिलाफ नारे लगाए और बाद में सभी के पुतले फूंके, इस प्रदर्शन में शामिल हुए आरक्षकों ने कहा कि हम जंगल में माओवादियों से लड़ाई लड़ रहे हैं और नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति कायम करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कथित तौर पर कुछ नक्सली समर्थक लोग बैकफुट पर जा रहे नक्सलवाद को हवा देने की कोशिश करते हैं, जिसके चलते हमारा मनोबल कमजोर होता है। हम शांति कायम करने के लिए लड़ रहे हैं, इसलिए कानून के दायरे में रहकर आज हम ये प्रदर्शन कर रहे हैं।
साभार : प्रदेश18/ईटीवी