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जन्मदिन विशेष : BJP के सारथी अमित शाह का जीवन एक परिचय जरूर पढ़ें …

अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष हैं, जिन्होंने 1997 से भाजपा के लिए सारथी की तरह काम करते आ रहे है।

अमित शाह का जीवन परिचय –

शाह का जन्म एक अमीर व्यवसायी के घर 22 अक्टूबर 1964 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता का नाम अनिलचंद्र शाह हैं जो अमेरिका में अपना बिजनेस चलाते थे। इनकी माँ का नाम कुसुमबा था 2010 में इनकी गिरफ्तारी से पहलें कुसुमबा जी का देहांत हो गया था। इनका गृह जिला पाटन (गुजरात) हैं। यही से इन्होने स्कूली पढाई की थी। 12 व़ी के बाद पढ़ाई के लिए अहमदाबाद चले गयें। यहाँ से इन्होने बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी की डिग्री हासिल की। अपने कॉलेज के दिनों में ही अमित शाह ने आरएसएस और abvp की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। इनके पोलिटिकल कैरियर की शुरुआत गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेंद्र मोदी के मिलन से हुईं। एक राजनितिक कार्यक्रम के दौरान दोनों की भेट हुई। इसके बाद मोदी-शाह के बिच अच्छी दोस्ती हो गईं। जिन्हें आज भी दुनिया सलाम करती हैं। शाह ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनें पिता के व्यापार में हाथ बटाना शुरू कर दिया कुछ वर्षो तक प्लास्टिक और PVC पाइप का व्यापार भी किया। मगर उनका मन बिजनेस में कम राजनीती की तरफ अधिक झोले मार रहा था।

शाह का परिवार –

शाह अपनें पिता के इकलौते बेटें हैं, इनकें चार बहन भी हैं।शाह का विवाह सोनल शाह के साथ 23 साल की उम्र में वर्ष 1987 को हुआ था। इनके एक ही बेटा हैं जय शाह जिनकी शादी 2014 में हर्षिता शाह के साथ हुई थी। अमित शाह बनिया जाति के हैं, जो जैन और हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं। नपी तुली एक स्पष्ट बात कहने वाले शाह इरादों के पक्के पर जब तक मंजिल प्राप्त नही हो जाती डटे रहने में विश्वास करतें हैं। कुछ लोग इन्हे प्रधानमन्त्री के करीबी होने की वजह से यहाँ तक पहुचने की बात कहते हैं। वे शायद इनके दमदार राजनीती करियर से वाकिफ नहीं हैं। आपको बता दे इन्होने स्थानीय निकाय से लेकर सासंद और विधायक के पदों के लिए 50 से अधिक चुनाव एक प्रत्याशी की भूमिका से लड़े हैं। वर्ष 2017 तक अमित शाह अपराजेय हैं अपनें जीवन के राजनितिक करियर में इन्होने एक बार भी हार का मुह नही देखा हैं।

शाह की राजनीती शुरुआत –

मोदी और शाह पहली बार 1982 में कॉलेज के दिनों में मिले थे, शायद यह राजनीती में आने का न्योता ही था। एक साल तक अपना बिजनेस करने के बाद 18 साल की उम्र में गुजरात की राजनीती में आ गयें। इन्होने वर्ष 1985 में विधिवत रूप से भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली।
राजनीती के आरम्भिक दिनों में इन्हे अधिक अनुभव ना होने के कारण कोई विशेष पदभार नही दिया गया। पहला अवसर था जब वर्ष 1990 में राजधानी क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार और प्रभावशाली नेता लाल कृष्ण आडवाणी के लिए चुनाव प्रचार का पूरा काम शाह को दिया गया। इसके बाद इन्हें बीजेपी के प्रधानमन्त्री पद के प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव प्रचार का कार्य दिया गया। इन दोनों चुनाव प्रचारों में बीजेपी को भरमार वोट मिले। तभी उच्च पद के नेताओ ने इन्हें पार्टी की तरफ से गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए सरखेज विधानसभा सीट से नामित कियें गये। यह अमित शाह का राजनितिक डेब्यू था इसके बाद 1997 से 2017 तक 20 वर्षो के सफर में अपराजेय रहने वाले शाह आज के प्रभावशाली नेताओ में से एक हैं।

शाह का राजनीतीक करियर –

सरखेज विधानसभा सीट से शाह ने अपने राजनितिक करियर की शुरुआत 1997 में की इसके दो साल बाद अहमदाबाद कोपरेटिव बैंक के अध्यक्ष चुने गये। इसके बाद शाह को गुजरात क्रिकेट संघ के उपाध्यक्ष चुने गये। उस समय GCA के अध्यक्ष स्वय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद अमित भाई शाह को गुजरात क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। शाह सरखेज सिट से चार बार MLA चुने जा चुके हैं। 2002 से 2010 तक शाह गुजरात की केबिनेट का मुख्य चेहरा और मोदी के परम मित्र थे। गुजरात दंगो से पहले हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 75 फीसदी सिट जीती थी। उन चुनावों में शाह ने सबसे अधिक वोटों से जीत हासिल की। उन्होंने 1.50 से अधिक वोट से जीत दर्ज की थी। दंगो के बाद फिर से कराए गयें चूनावो में शाह 2.50 लाख से अधिक वोटों से विजयी हुए।
शाह वर्तमान में लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं। इनके अतिरिक्त गुजरात के गृहमंत्री और क्रिकेट संघ के अध्यक्ष और बीजेपी के राष्ट्रिय महासचिव के पद पर काम कर चुके हैं।

अमित शाह को जेल – अमित शाह और विवाद कोई नईं बात नहीं हैं, राजनितिक द्वेष हो या जातीय दुश्मनी के कई मामले दर्ज हो चुकें हैं, हालाँकि किसी भी मामले में इन्हे जेल या सजा नही हुई हैं। गुजरात दंगो के कुछ साल बाद एक मुठभेड़ में दो युवकों की हत्या हुई थी। ये वाकया अहमदाबाद का ही हैं। बाद में इस मामले की स्पेशल जांच में ये नतीजें सामने आए कि मारे गये लोग मुख्यमंत्री पर दंगो का बदला लेने के लिए हमला करने आए थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान एक रोचक मोड आया। पिल्लई नाम अधिवक्ता द्वारा कोर्ट में याचिका दर्ज की गयी।याचिकाकर्ता ने कोर्ट से दरखास्त कि इस मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाया जाए। इस पर याचिकाकर्ता द्वारा सबूत और दस्तावेज भी कोर्ट में प्रस्तुत कियें गये। मगर अपर्याप्त सबूतों के कारण कोर्ट ने इस याचिका को रद्द कर दिया था। अमित शाह को 25 जुलाई 2010 को गिरफ्तारी भी देनी पड़ीं थी सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात कोर्ट द्वारा जमानत के बाद शाह को रिहा कर दिया गया था। इस मामले में शाह के अधिवक्ता राम जेठमलानी थे। जेठमलानी और सीबीआई के वकील तुलसी कई बार कोर्ट में ही उलझ पड़े थे।

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