Sunday, June 29, 2025
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केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले जाएंगे कल, बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे केदारनाथ

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जून 2013 की भीषण आपदा में तहस-नहस हुई बाबा केदारनाथ की नगरी कुछ ही सालों में इतनी बदल जाएगी किसी ने सोचा नहीं होगा। खासकर इन तस्वीरों को देखने के बाद तो कोई भी यह यकीन नहीं करेगा। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पहले धाम की भव्य तस्वीरें कैमरे में कैद हुई हैं। केदारनाथ धाम में कई तरह के बदलाव हो गए। यकीनन इस बार धाम आने वाले श्रद्धालुओं को यह एक नए अवतार में दिखेंगे। केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए श्रद्धालुओं में गजब का उत्साह है। रविवार (29 अप्रैल) को केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए जाएंगे। पहले दिन भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ पहुंचे हैं। शनिवार को केदारनाथ पैदल मार्ग पर भक्तों की कतार लगी रही। देश-विदेश के तीर्थयात्री बाबा केदार के दर्शनों को आतुर हैं। यही नहीं पैदल मार्ग पर आस्था के साथ ही प्रकृति की सुन्दरता के बीच यात्री रोमांचित भी नजर आए।

गौरीकुंड से केदारनाथ की 18 किमी पैदल दूरी में आस्था की अद्भुत मिसाल देखने को मिल रही है। थकान को मिटाने के लिए यात्री अपने साथ वाद्य यंत्र लेकर चल रहे हैं। इनमें जवान बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं ही नहीं दिव्यांग भी शामिल हैं। वहीं केदारनाथ बेस कैंप पहुंचकर यहां की सुन्दरता और प्रकृति के अद्भुत नजारे को देखकर यात्री भी काफी उत्साहित नजर आए। केदारनाथ में आपदा के बाद काफी कुछ बदल गया है। कई ऐसे दृश्य देखने को मिल रहे हैं जो आपदा की यादों को पूरी तरह भुलाकर नए रूप में यात्रियों का उत्साह बढ़ा रहे हैं।

जानिए, क्या है केदारनाथ का इतिहास…

देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च है केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।

यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।

85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल ‍दी गई होगी। खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई। पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचोबीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।

पांच ‍नदियों का संगम – न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच ‍नदियों का संगम भी है यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।

मंदिर का निर्माण इतिहास – पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। यह मंदिर मौजूदा मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा।

मंदिर के कपाट खुलने का समय – दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।

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