ओडिशा के प्रकाश राव ने एक अनूठी पहल से ऐसे बच्चों को मुकाम तक पहुंचाया जो शायद कहीं जीवन की आपाधापी में खो जाते। इसी ज़ब्बे को आगे बढ़ाने और ऐसे कई लोगों को प्रेरणा देने के लिए प्रधानमंत्री ने बच्चों से ख़ास मुलाक़ात की।
डी प्रकाश राव, उम्र 60 साल, पेशा चाय की दुकान, दिन भर की कमाई 600 से 700 रू….कटक की गलियों में इनका छोटा सा ठिकाना…ये उम्मीद हैं ऐसे बच्चों की, जिनके मां-बाप दिहाड़ी करके – करते हैं गुज़ारा। 17 साल पहले प्रकाश राव झुग्गीयों में रहने वालों के दरवाज़े स्कूल लेकर पहुंचे, लेकिन हुआ विरोध और छिड़ी एक मानसिक जंग… दिहाड़ी कामगारों के बीच शिक्षा से ज़्यादा चुनौती घर चलाने की …..स्कूल थे सरकारी भी …समाज सेवा वाले छोटे-बड़े भी….लेकिन कमी थी तो बस एक हिम्मत की और सोच की…..ऐसे में प्रकाश राव बनें अंधेरे में उजाला।
समाज के प्रति ज़िम्मेदारी का एहसास और कुछ सकारात्मक बदलाव प्रकाश राव की प्रेरणा है….साल 1976 में मौत से लड़कर जीते और जीवन बदल डाला….तब एक यूनिट रक्त के कर्ज़दार प्रकाश राव बनें थे…. शुरू हुआ उस आत्मबोध से लड़ने का सिलसिला…. सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज कटक में 214 बार रक़्तदान कर चुके हैं और सफ़र जारी है। अब काम के बाद प्रकाश राव का ठिकाना अस्पताल और स्कूल दोनों है। एक जगह तीमारदारों से लेकर मरीज़ों की सेवा तो दूसरी जगह एक ऐसी पहल जो देश, समाज और एक घर की तक़दीर बदलेगी।
26 मई 2018 प्रकाश राव और इनके स्कूल के लिए एक बड़ा दिन, देश के प्रधानमंत्री ख़ुद पहुंचे इनके बीच….ये पल उन हज़ारों लाखों सोच के लिए हिम्मत है जो किसी भी गांव,समाज में लाना चाहते हैं कुछ बेहतर बदलाव..प्रधानमंत्री मोदी का बच्चों के साथ घुल-मिल कर बात करना। ये प्रेरणा है उन लाखों वंचितों, गरीब बच्चों मां-बाप के लिए जिनके मन में ज़िन्दगी में कुछ कर गुज़रने की तमन्ना है। ख़ुशी प्रकाश राव और बच्चों की मुस्कानों में भी, उत्साह इनके चेहरों पर भी… प्रधानमंत्री के साथ 17 सालों की संघर्ष के पल साझा करने की..बच्चों के मन में ख़ुशी एक नयी ताक़त और हिम्मत की।
