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इस दादी की हिम्मत को सलाम – जन्म से लेकर मृत्यु तक योजनाएं बताने वाली सरकार की इस महिला के सामने सारी योजनाओं ने दम तोड़ दिया

00 350 की वृद्धा पेंसन और सरकारी चांवल से चल रहा 4 लोगो का ये परिवार
00 बेहतर होगा जिन विभागों से सरकारी योजनाएं गांव के अंतिम व्यक्ति तक जानी है पहले उस विभाग के पास बैठे जरूरतमंद तक जाए ये तभी संभव होगा जब अधिकारियों की मंशा भी साफ होगी

विजय शर्मा की खास रिपोर्ट – कोंडागांव नेत्रहीन पोते को दादी का सहारा 70 साल की बिमार दादी अपने पोते को दिखा रही है अपनी आंखों से दुनीया एएएपरिवार को है सरकार से मदद की गुहार 350 रू के पेंशन व सरकारी चावल से चल रहा है घर आर्थिक स्थीती ठीक नही होने ये एक भाई ने पढा़ई छोड़ी तो बहन भी तंगी की वजह से कर रही है पढाई छोडने की तैयारी ।दुष्यंत की इच्छा प्रधान मंत्री से मिलकर अपनी समस्या बताने की।

ये कहानी कोण्डागांव जिले के सरगीपाल वार्ड के निवासी दुष्यन्त देवांगन व उसकी बुढी दादी प्रेमबत्ती देवांगन की है इनके अलावा दुष्यंत का एक छोटा भाई उमंग देवांगन 14 वर्ष व एक छोटी बहन भुमीका देवांगन 18 वर्ष है। दुष्यंत की माता का निधन 2009 में तो पिता ने 2017 में का साथ छोड कर चल बसे। पिता के मौत के बाद से परिवार चलाना मुश्किल हो गया था। नेत्रहीन पोते के साथ परिवार को दादी ने अपने वृद्धा पेशंन से व सरकारी चावल से जैसे – तैसे संभाल लिया, मगर अब हालात बहुत खराब है। 60 डीसमील कृषि भुमी है मगर उसे भी कोई कमाने वाला नही है। अांंखो से नही देख पाने के बाद भी दुष्यंत में अपने परिवार के लिए कुछ करने की हौसला देखकर दादी ने उसकी पढाई में कमी नही की है। आज भी हाथ पकडकर उसे कॉलेज ले जाती है और क्लास पुरी हाने के बाद दादी और पोते एक दुसरे का हाथ थामे घर वापस आते है।

दुष्यंत ने बी ए फाईनल कर लिया, अब उसे रोजगार की तलास है मगर रोजगार नही मिलने से परेशान भी। दुश्यंत का 10 वी में 73 प्रतिषत 12वीं में 69 प्रतिषत और बी ए में 57 प्रतिषत है। दुष्यंत ने अपनी 12 वीं तक की पढाई समाज कल्याण विभाग की मदद से पुरी की है। आगे कॉलेज के लिए विभाग से कोई मदद नही मिलने के कारण स्वयं के पेशंन व दादी का पेंशन से पुरी कर ली है। कई बार जाब के लिए आवेदन किया मगर दुश्यंत का कहना है की हर जगह कम्प्युटर मांगते है, जो मेरे पास नही है मै कम्प्युटर कोर्स भी करना चाहता हु मगर यंहा नेत्रहीनों के लिए कम्प्युटर र्कोस का कोई सेन्टर नही है न ही मेरे पास लेपटाप है।

शासन – प्रशासन से नही मिल रही मदद – भले ही नेत्रहीन मुखबाधीत विकलांगो के लिए छग. सरकार ने दर्जनों योजनाये बनायी हो मगर उसका कितना लाभ मिलता है। ये दुश्यंत से समझा जा सकता है। कलेक्टर विधायक से लेकर मंत्री तक से मदद की गुहार लगा चुका दुश्यंत अब प्रधानमंत्री से मिलना चाहता है, वह दिल्ली जाना चाहता है, मगर दिल्ली जाने के लिए भी उसके पास पैसे नही है। मगर दादी कहती है मै इसे दील्ली भी भेजुगी मै लोगो के घर काम करूगीं और पैसे जमाकर भेजुगी, मुझे भरोसा है मेरा पोता कमजोर नही है भले ही सिस्टम कमजोर हो।

कोई सरकारी विभाग की ऐसी चौखट नहीं बची जहां इस 70 साल की दादी ने अपने पोते की मदद के लिए अपना सर न टेका हो। कहीं से भी इस महिला को अस्वासन के सिवा कुछ न मिला। पोते की मदद की चाह ने सारे सरकारी दफ्तर दिखा दिए, जहां – जहां से कोई मदद की उम्मीद थी, मगर मिला कुछ नहीं।

इन सभी बातों के विपरीत सलाम है इस दादी को जिसकी हिम्मत अभी तक नहीं हारी, अब दादी ने ठान लिया है की इसे वो दिल्ली भेज कंम्प्यूटर सिखायेगी चाहे जो हो जाए।

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