Advertisement Carousel

VIDEO – भगवान शिव ही एक ऐसे देव है जिनकी देती है तीसरी आँख दिखाई, क्या है भगवान शिव की तीसरी आँख का रहस्य…..

वेद शास्त्रों के अनुसार इस धरा पर रहने वाले सभी जीवों की तीन आँखे होती है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव है जिनकी तीसरी आँख दिखाई देती है। क्या है भगवान शिव की तीसरी आँख का रहस्य…..
            आइये जानते है विस्तार से :-
  

भगवान शिव की तीन आँखे होने के कारण इन्हें त्रिनेत्र धारी भी कहा जाता है। जिनमें एक आँख में चन्द्रमा और दूसरी में सूर्य का वास है और तीसरी आँख को विवेक माना गया है, काम, क्रोध , लोभ , मोह  इन सब में घिरने के पश्चात् जब मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तब उसकी तीसरी आँख जहाँ विवेक का वास होता है इसका प्रयोग कर संतुलन स्थापित किया जा सकता है।  जब भी भगवान शिव की तीसरी आँख खुलती है उस समय क्रोध विवेक का स्थान ले लेता है और सब कुछ भस्म कर कर देता है।
पुराण अनुसार भगवान के तीनो नेत्रों को त्रिकाल का प्रतीक माना गया है। जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्य का वास होता है। स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताललोक भी इन्ही तीनों नेत्रों के प्रतीक है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव है जिन्हें तीनो लोको का स्वामी कहा गया है।  भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में क्यों पूजा जाता है ?
भगवान शिव की तीसरी आँख को प्रलय कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि एक दिन भगवान शिव की तीसरी आँख से निकलने वाली क्रोध अग्नि इस धरती के विनाश का कारण बनेगी। शिव जी के तीनों नेत्र अलग – अलग गुण रखते है जिसमें दायाँ नेत्र सत्वगुण और बायाँ नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है।
तीसरी आँख सभी मनुष्यों के पास होती है। किन्तु इसका अहसास कठोर साधना और ज्ञान के द्वारा ही किया जा सकता है। भगवान शिव अपनी तीसरी आँख द्वारा इस संसार की सभी गतिविधियों का जान लेते है | ऐसा कुछ नही जो भगवान शिव की आँख से ओझल हो। इसलिए भगवान शिव को परमब्रह्म कहा गया है। तीसरी आँख जीवन में आने वाली सभी परेशानियों और कठिनाइयों से अवगत कराती है, और सही व गलत के बीच निर्णय लेने की शक्ति देती है। रात्रि में की गयी बजरंग बाण की यह सिद्धि, तंत्र का काम करती है।
धरम ग्रंथो में भगवान शिव की तीसरी आँख से जुडी एक कथा प्रचलित है जिसमे प्रणय के देवता कामदेव अपनी क्रीडाओं के द्वारा शिव जी की तपस्या भंग करने का प्रयास करते है, और जैसे ही शिव जी तपस्या भंग होती है शिव जी क्रोधित हो अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर देते है।  यह कथा मनुष्य जीवन के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी है। कामदेव का वास प्रत्येक मनुष्य के अन्दर होता है। उसे अपने विवेक और बुद्धि द्वारा मन में उठने वाले क्रोध और अवांछित काम वासना को शांत करना चाहिए।
error: Content is protected !!