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छत्तीसगढ़ में आखिर क्यों बिक रही है अवैध रूप से शराब! अगर सरकार सुझाव माने तो होगा फायदा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय

समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मीडिया के माध्यम से एक अहम मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ एक बेहद ही सरल और शांत प्रदेश के रूप में जाना जाता है। लेकिन शराब एक ऐसा विषय है जिससे यह शांति और सरलता प्रभावित होती है। एक ऐसा प्रदेश जहाँ विकास की असीम संभावनाएँ हैं, वहाँ शराब हमेशा से ही विकास में रोड़ा बनती रही है, चाहे सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो। वर्ष 2018 के पूर्व कांग्रेस पार्टी भी विपक्ष में होते हुए शराब के ख़िलाफ़ आंदोलित थी और सत्ता में आने के बाद शराबबंदी के लिए वचनबद्ध भी थी। लेकिन 2 साल बाद भी प्रदेश में शराबबंदी की कोई सुगबुगाहट नहीं है। इसके उलट सरकार स्वयं ही शराब बेचने में लगी हुई है। अतएव इसे धन उत्सर्जन का एक प्रमुख स्त्रोत मान रही है।

छत्तीसगढ़ में तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और आम नागरिकों की माने तो शराब को लेकर भी छत्तीसगढ़ की जनता में दो फाड़ हैं। एक पक्ष कहता है कि शराब बंद होनी चाहिए और दूसरा पक्ष कहता है कि शराब यथावत जारी रहनी चाहिए, लेकिन जो दूसरा पक्ष है वह शराब पर सरकारी नीति की आलोचना करने से नहीं चूकता है। उनके हिसाब से कुछ निम्नलिखित कारण है इस पर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए…

महंगी शराब – जनता की राय है कि सरकार ने शराब इतनी ज्यादा महंगी कर दी है कि आम आदमी अवैध रूप से निर्मित और आयात की हुई शराब पीने को मजबूर हैं जिसकी गुणवत्ता भी निम्न स्तर की है। शराब महंगी होने से लोग ज़हरीली शराब और अन्य सस्ते नशे की लत को अपना रहे हैं जिससे लोगों की जान जाने की संभावना बढ़ जाती है। उच्च श्रेणी की शराब भी इतनी महंगी है कि लोग उसे दूसरे राज्यों से लेकर आते हैं और उसमें भी तस्करी जारी है। कई लोग जो हवाई जहाज से यात्रा करते हैं वे तो दूसरे शहरों के हवाई अड्डों से सरकारी नियमों के तहत बाक़ायदा रसीद कटवा कर शराब खरीद कर लाते हैं। लेकिन विडंबना है कि हवाई अड्डे पर चाय महंगी मिलती है और शराब सस्ती।

छत्तीसगढ़ में शराब आखिर महंगी क्यों? – आम जनता और शराब व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि जहां शराब बनती है सरकार वहां एक्साईज ड्यूटी के रूप में टैक्स लगाती है फिर वही शराब जब बिकने के लिए दुकानों में जाती है तब दोबारा जीएसटी के रूप में टैक्स लगता है। अंत में जब शराब पूरे प्रदेश में सरकार द्वारा स्वीकृत बार (मदिरालय) में जाती है तो वहाँ भी राज्य सरकार सालाना लाइसेंस फीस के रूप में टैक्स वसूलती है। इसीलिए जब एक ही शराब पर तीन बार टैक्स लगता है तो शराब का महंगा होना लाजिमी है।

सुझाव – राज्य सरकार को सुझाव है कि शराब अगर बेचनी ही है तो शराब को निजी हाथों में सौंप दिया जाए। इससे रोजगार बढ़ेगा और सरकार की छवि भी ठीक होगी। सरकार को शराब पर केवल एक बार ही टैक्स लगाना चाहिए। शराब के दाम कम होने से बाहर से आने वाली शराब और उसकी तस्करी पर रोक लगेगी और पुलिस प्रशासन पर भी भार कम होगा। कम दामों की शराब के कारण दूसरे प्रदेश में भी छत्तीसगढ़ में निर्मित शराब का डिमांड बढ़ जाएगा और सरकार को कई गुना अधिक फायदा होगा। शराब को निजि हाथों में दे कर सरकार को शराब की गुणवत्ता में सुधार लाने और इसमें जारी भ्रष्टाचार और धांधली पर रोक लगाने का काम करना चाहिए।

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