कोरिया / हर वर्ष 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर समाज में दिव्यांगों के विकास और पुनरुद्धार के अलावा बराबरी के अवसर मुहैया करने पर जोर देने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है और दिव्यांगों के उत्थान के लिए उनके अधिकारों के बारे में समाज में लोगों में जागरूकता लाने, उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देने, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बडी बडी बातें की जाती हैं।
इन सब के अलावा आपको बता दे कि सिस्टम की मार झेल रहे कोरिया के एक दिव्यांग व्यक्ति जो आज दुकान दुकान जा कर भिक मांगने को मजबूर है। सिस्टम ने इनके सांथ गंदा मजाक कर आज लोगो के बीच भी मजाक बना दिया है।
इनका नाम रूपेश है जो छोटे हाइट और पैरों से दिव्यांग है हालांकि डंडे के सहारे ये चल फिर लेते है। प्रशासन ने कैम्प लगा कर दिव्यांगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए शासकीय कार्यालयों में कलेक्टर दर में नियुक्ति किया था उनमें से एक रूपेश भी थे। जिनको जिला मुख्यालय एसडीएम कार्यालय में भृत्य पद पर रखा गया था।
फिलहाल तीन महीने में पेमेंट के लाले पड़े, जिससे घर की आर्थिक स्थिति डगमगा गई और भूखे रहने की नवबत तक बन गई। कई बार उच्य अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी सिस्टम ने नहीं सुना तो इन्हें नौकरी छोड़ भीक मांगने को मजबूर होना पड़ा।
सोनहत साप्ताहिक बाजार के दिन जब सोनहत पहुचे रूपेश भिक मांगते नजर आए तो हमारी न्यूज टीम ने इनका हॉल चाल जाना और जब पूछा तो उन्होंने अपना दुखड़ा सुनाते सुनाते रो पड़े।
रूपेश ने बताया कि वे अपनी पत्नी के सांथ सलका में रहते है और इसी तरह गांव गांव जा कर भीक मांग गुजर बसर करता हु मेरे पास दूसरा कोई सहारा नही है । इनका दर्द देख ये तो साफ हो गया कि सिस्टम में बैठे लोगो ने सिस्टम को ही अपंग बना दिया है। सरकार दिव्यांगों के उत्थान के लिए लाख प्रयास क्यो न कर ले पर ये लोग उससे अपंग ही बना कर रखेंगे।
खैर आज दिव्यांग दिवस हैं जो हर साल आते भी रहेंगे। असल मे ऐसे दिव्यांग की हालत में जब सुधार दिखने को मिले तभी हमें यह दिवस मनना चाहिए। अब देखना होगा खबर देखने के बाद सिस्टम की क्या अगली चाल होगी। क्या रूपेश का बकाया वेतन और छोड़ी गई नॉकरी उसे वापस मिल सकेगी या भिक ही अंतिम सहारा होगा।