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बिना फोन आए भी अक्सर सुनाई देती रहती है रिंगटोन? अगर हां, तो हो जाइए सावधान

नई दिल्ली : राशन की दुकान पर पेमेंट करना हो या फिर ईमेल-मैसेज चेक करना, यह कहना गलत नहीं होगा कि हम सभी पूरे दिन मोबाइल फोन की ‘गिरफ्त’ में रहते हैं। पर कहीं मोबाइल पर हमारी इतनी निर्भरता किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का कारण न बन जाए? बार-बार फोन चेक करते रहने की आपकी आदत कहीं असामान्य तो नहीं है?

ये सवाल इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि मनोचिकित्सकों के पास ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है जो मोबाइल फोन को लेकर अजीब भ्रम के शिकार पाए जा रहे हैं। डॉक्टर बताते हैं, कई युवा ऐसी समस्या के साथ आ रहे हैं जिन्हें लगता है कि अक्सर उनका फोन बज रहा है या बाइब्रेट कर रहा है, हालांकि जब वह फोन देखते हैं तो पता चलता है कि असल में न तो कोई नोटिफिकेशन है और न ही कोई कॉल।

बिना फोन बजे भी कानों में रिंगटोन सुनाई देते रहने की ये समस्या एंग्जाइटी और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भी कारण बन सकती है।

बिना फोन बजे घंटी सुनाई देना

बिना फोन बजे भी कानों में रिंगटोन सुनाई देते रहने के पीछे क्या कारण है, इसे समझने के लिए हमने भोपाल स्थित वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी से बातचीत की। डॉ सत्यकांत बताते हैं, अस्पतालों में मोबाइल फोन से संबंधित कई तरह के विकारों के मरीज बढ़ रहे हैं। इसके सबसे ज्यादा शिकार 20-30 की आयु वाले युवा देखे जाते हैं, कुछ मामलों में 40 की उम्र तक के लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं।

ऐसी चीजों का अनुभव करना जो असल में है ही नहीं, जैसे बिना फोन बजे घंटी सुनाई देते रहना या बार-बार वाइब्रेशन जैसा अनुभव होते रहने को मनोचिकित्सा की भाषा में फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम की समस्या के रूप में जाना जाता है।

फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम क्या है?

फोर्ट वेन स्थित इंडियाना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. मिशेल ड्रोइन ने इस मानसिक स्वास्थ्य समस्या के बारे में समझने के लिए अध्ययन किया। रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में शामिल 89 प्रतिशत स्नातक छात्रों ने औसतन हर दो सप्ताह में इस तरह की आभासी चीजों का अनुभव किया। हालांकि उनमें से करीब 11 में से एक छात्र में ये समस्या गंभीर रूप से परेशान करने वाली पाई गई।

जो लोग टेक्स्ट मैसेजिंग पर अधिक निर्भर थे वे इनसे अधिक परेशान देखे गए। ऐसे लोग अक्सर फोन चेक करते पाए गए, भले ही कोई मैसेज न आया हो।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?

डॉक्टर सत्यकांत बताते हैं, मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग के कारण फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम एक उभरता हुआ विकार है। लोगों को लगता है कि उनका सेल फोन वाइब्रेट या रिंग कर रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। ये असल में मनोवैज्ञानिक या तंत्रिका संबंधी परिवर्तनों से संबंधित स्थिति है। पीवीएस की समस्या चिंता, अवसाद और भावात्मक विकारों को भी जन्म दे सकती है। अगर फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम का ठीक से इलाज न किया जाए तो लोगों में बर्नआउट सिंड्रोम हो सकता है।

मस्तिष्क से संबंधित समस्या

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, पीवीएस की समस्या उन लोगों में अधिक देखी जाती रही है जो फोन पर बहुत अधिक समय बिताते हैं। कुछ स्थितियों में मस्तिष्क में सेरेब्रल कॉर्टेक्स की समस्या और ह्यूमन सिग्नल को पहचानने संबंधी दिक्कतों के कारण भी ये समस्या हो सकती है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स मानव मस्तिष्क की उच्च-स्तरीय प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार है, जिसमें भाषा, स्मृति, तर्क, विचार, सीखना, निर्णय लेना, भावना, बुद्धि और व्यक्तित्व शामिल है।

इसके अलावा ‘अटैचमेंट एंग्जाइटी’ जो कि एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसमें पारस्परिक संबंधों में भय, चिंता या असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है, इसके शिकार लोगों में भी फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम की दिक्कत हो सकती है।

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