नई दिल्ली : शोधकर्ताओं ने 1900 से अधिक इकट्ठा किए गए डेटा का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि 20वीं शताब्दी में जलवायु परिवर्तन की वजह से दिन की लंबाई में प्रति शताब्दी 0.3 और 1.0 मिलीसेकंड के बीच बढ़ोत्तरी हुई है।
दुनियाभर के लिए जलवायु संकट एक चुनौती बन चुका है। बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। इसके साथ ही हैरान करने वाली बात यह है कि अब दिन भी लंबे हो रहे हैं। एक नए शोध में खुलासा हुआ है कि ध्रुवीय बर्फ के पिघलने की वजह से पृथ्वी ज्यादा धीमी गति से घूम रही है। इससे अभूतपूर्व दर से दिनों की लंबाई बढ़ रही है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में एक शोध प्रकाशित किया है। इस शोध के हवाले से नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के एक अधिकारी ने बताया कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बहने वाले पानी के कारण भूमध्य रेखा के आसपास अधिक द्रव्यमान है।
ईटीएच ज्यूरिख विश्वविद्यालय के बेनेडिक्ट सोजा का कहना है कि आमतौर पर पृथ्वी को एक गोले के तौर पर जाना जाता है, लेकिन इसे तिरछा गोलाकार कहना अधिक ठीक होगा, जो भूमध्य रेखा के चारों तरफ कुछ हद तक सत्सुमा की तरह उभरा है, जिसके आकार में लगातार बदलाव हो रहा है। दैनिक ज्वार से महासागरों और परतों पर प्रभाव पड़ता है। यह बदलाव टेक्टोनिक प्लेटों के बहाव, भूकंप और ज्वालामुखी के कारण होता है।
शोधकर्ताओं ने 1900 से अधिक इकट्ठा किए गए डेटा का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि 20वीं शताब्दी में जलवायु परिवर्तन की वजह से दिन की लंबाई में प्रति शताब्दी 0.3 और 1.0 मिलीसेकंड के बीच बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2000 के बाद से यह दर बढ़कर 1.33 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी हो चुकी है। पृथ्वी की सतह पर यह यह महत्वपूर्ण त्वरण द्रव्यमान की गति से जुड़ा है। विशेष तौर पर ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से यह हुआ है। यह बीते कुछ दशकों में तेज हुआ है।
पिघलती बर्फ से लेकर महासागरों तक के द्रव्यमान के पुनर्वितरण धरती के आकरण बदलाव होता है। इसके पृथ्वी थोड़ी अधिक चपटी हो जाती है। द्रव्यमान में इस बदलाव के कारण पृथ्वी के घूर्णन पर प्रभाव पड़ता है। इससे दिन लंबे हो जाते हैं। शोध में जानकारी मिली कि यह जन परिवहन बीते तीस साल में पृथ्वी के आकार में हुए परिवर्तनों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, आने वाले सालों में दिन बढ़ जाएगा।