Wednesday, April 30, 2025
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छत्तीसगढ़ के इस जिले के मंदिर में सोना, चांदी, प्रसाद नहीं …. चढ़ाए जाते हैं कंकड़-पत्थर, मनोकामना होती हैं पूर्ण, जानिए कब से चली आ रही यह परंपरा

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बिलासपुर: देश भर में सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं जहां पर भक्त देवी-देवताओं को खुश करने चढ़ावे के तौर पर सोना, चांदी, प्रसाद, चुनरी या अन्य कई तरह की सामग्री चढ़ाते है, लेकिन कई ऐसी देवी देवता हैं जिन्हें चढ़ावे के रूप में अलग तरह की वस्तु पसंद है, उनकी पसंद की वस्तु कुछ अलग ही होती है जो लोगो का ध्यान आकर्षित करती है. बिलासपुर में भी इसी तरह की देवी है जिन्हें पत्थर पसंद है.

खमतराई के मंदिर में भक्त पत्थर के चढ़ावे से देवी को खुश करते हैं.देवी स्वयंभू है और लगभग 100 साल पहले से इनकी यहां स्थापित होने के प्रमाण मिलते है. देवी पेड़ के नीचे स्वयं स्थापित हुई थी. इस जगह पहले जंगल हुआ करता था. यहां से गुजरने वाले लोग पत्थर चढ़ाकर आगे बढ़ते थे. देवी को चढ़ावा चढ़ाने के लिए कुछ नहीं होने पर लोग आसपास से पत्थर उठाकर देवी को अर्पित करते थे, तब से चली यह परंपरा चली आ रही है…..पेश हैं ख़ास रिपोर्ट…

मंदिर में नवरात्र के समय श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुचते हैं. यह मंदिर अनूठा है, इसका निर्माण तो अभी हाल के वर्षों में शुरू हुआ है, लेकिन इस स्थान पर लोगों की श्रद्धा और आस्था काफी पुरानी है. लगभग 100 साल से भी ज्यादा देवी यहां विराजमान है. जब यहां जंगल हुआ करता था, और जंगली जानवर घुमा करते थे. तब यहां से आने-जाने वाले लोग अपने घर या गंतव्य तक सकुशल पहुंचने के लिए पांच पत्थर रखकर मनोकामना मांगते हुए आगे बढ़ जाते थे.

इसके बाद सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचते थे. धीरे-धीरे लोगों को बगदाई वनदेवी के विषय में जानकारी हुई. बाद के वर्षों में यहां जब बस्ती बसी तो यहां पेड़ के नीचे रखी प्रतिमा के लिए आसपास के लोगों ने छोटे मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर से जुड़े लोग और श्रद्धालुओं ने बताया कि 100 साल पहले से भी बगदाई वनदेवी यहां स्थापित हैं. तब से परंपरा चली आ रही है.लोगों ने 5 पत्थर रखकर अपनी मनोकामना की और यह परम्परा आज भी है.

बगदाई वनदेवी के विषय में कहा जाता है कि वह स्वयंभू स्थापित हैं .क्योंकि लगभग 100 साल से लोग यहां आ रहे हैं. लेकिन किसी को यह नहीं मालूम है कि देवी की प्रतिमा कौन लेकर आया है और यहां कैसे पहुंची. कहते हैं कि पेड़ के नीचे ही लोगों को देवी की प्रतिमा दिखी थी. शुरुआती दौर पर तो कोई ऐसे ही प्रतिमा होने की सोच देवी की ओर ध्यान नहीं देता था. लेकिन बाद में एक जमीदार को देवी ने स्वप्न देकर खुद के होने की जानकारी दी.धीरे-धीरे लोगों को देवी की चमत्कार की जानकारी लगने लगी. छोटे से मंदिर के रूप में निर्माण कराकर देवी को स्थापित कर दिया गया… 

श्रद्धालुओं की अपनी-अपनी आस्था है।मां वन देवी को पांच चकमक पत्थर चढ़ाए जाते हैं। इस चकमक पत्थर को छत्तीसगढ़ी में चमरगोटा कहा जाता है और ये नदी में, रेत में मिलता है। इस मंदिर में पांच पत्थर चढ़ाने की प्रथा सदियों पुरानी है। इसी के चलते यहां स्थापित वन देवी की प्रतिमा चारों ओर से पत्थरों से घिरी दिखाई देती है, जबकि इन पत्थरों को बीच-बीच में हटाया भी जाता है, अन्यथा पूरी प्रतिमा पत्थरों से ढक जाएगी…

यहां के पुजारी कहते हैं, कि उन्हें या उनके पूर्वजों को भी नहीं पता कि देवी की प्रतिमा पर पत्थर चढ़ाना क्यों और कैसे शुरू हुआ। ये मंदिर अभी जिस जगह पर है, सालों पहले वहां से जंगल शुरू हुआ करता था, लिहाजा माना जा रहा है कि वन देवी की यह पूजा दो-तीन सौ साल पुरानी परंपरा होगी। सालों से पत्थर चढ़ाने के दौरान मंदिर में बेहद अजीब बात भी सामने आई है। यहां आसपास के क्षेत्र में नदी नहीं होने के बाद भी चकमक के पत्थरों की कोई कमी नहीं आर्ई हैं। हर भक्त पांच पत्थर चढ़ाता है फिर भी पत्थर कभी बहुत मेहनत से खोजने नहीं पड़े।

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