Tulsi Vivah 2024: हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का महत्व होता है एक अलग ही स्थान माना जाता है। दिवाली के 15 दिन बाद प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के शालिग्राम स्वरूप और तुलसी माता का विवाह होता है। इसकी तिथि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के देवउठनी एकादशी मानी जाती है। तुलसी विवाह के दिन गन्ने का मंडप बनाने और उसमें विवाह करने की परंपरा होती है। तुलसी विवाह में गन्ने का खासा महत्व होता है चलिए जानते हैं गन्ने का मंडप बनाने की परंपरा।
क्यों बनाते हैं गन्ने का मंडप
जैसा कि, ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने जानकारी में बताया है कि, देवउठनी एकादशी की पूजा में तुलसी विवाह किया जाता है। दरअसल चतुर्मास की समाप्ति के बाद देव जागृत होते है इसके बाद चार महीने से थमे सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरु हो जाते है यानि चार महीने के बाद शुभ मुहूर्त की शुरुआत होती है। इसके लिए विवाह के शुभ मुहूर्त औऱ शादियों की शुरुआत से पहले देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह किया जाता है इसके बाद से शुभ कार्य औऱ शादियां की जाती है। माता तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की शादी को लेकर कई परंपराएं विद्यमान है। इस तुलसी विवाह के मौके पर गन्ने को उचित स्थान देते हुए हर व्यक्ति अपने घर में तुलसी का चंवरा बनाकर उसमें तुलसी माता जी को सुंदर सजाकर गन्ने की मंडप मानकर तुलसी विवाह की परंपरा निभाता है।
प्रकृति से जुड़ी चीजें करते हैं अर्पित
यहां पर तुलसी विवाह को लेकर हर प्रदेश की अलग परंपरा है इसके लिए सब अपनी संस्कृति को जोड़कर इस खास दिन को मनाते है। तुलसी विवाह के दिन प्रकृति से जुड़ी हुई चीजें अर्पित की जाती है इसमें गन्ने का मंडप बांधते हैं. भगवान के विवाह में चना भाजी की सब्जी, शकरकंद, छोटा बेर झरबेरी, सिंघाड़ा, मूली, बड़ा भाटा, फूल वाला भाटा सभी अर्पित किया जाता है। गन्ने को मंडप की भांति मानते हुए तुलसी विवाह की परंपरा शुरु की जाती है। यह परंपरा हर साल निभाई जाती है।