कवर्धा।कबीरधाम जिले के मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर चिल्फी घाटी के घने जंगलों में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा और संरक्षण के अभाव का शिकार हो रहा है। 9वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर अपने समय की भव्यता और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। आज इसकी हालत जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। जब हमने दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए इस स्थान का दौरा किया, तो मंदिर के बिखरे हुए अवशेष और नक्काशीदार पत्थर इसके ऐतिहासिक महत्व और गौरवशाली अतीत की कहानी कह रहे थे।
मंदिर परिसर में शिवलिंग, नंदी, और खंडित गणेश प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं, जो इस बात के प्रमाण हैं कि यह स्थान कभी एक समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा होगा। इसके अलावा, पास ही में स्थित एक प्राचीन जलस्रोत भी है, जो आज भी उपयोग में लाया जा रहा है।
ग्रामीणों की व्यथा: उपेक्षा और अनदेखी की कहानी
स्थानीय निवासी हरीश यदु बताते हैं कि उन्होंने और उनके पूर्वजों ने इस स्थान को हमेशा इसी स्थिति में देखा है। ग्रामीणों के अनुसार, इस मंदिर की ओर शासन-प्रशासन ने कभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। यहां तीन फीट ऊंची गणेश प्रतिमा भी मौजूद है, जिसकी पूजा-अर्चना आज भी स्थानीय ग्रामीण समय-समय पर करते हैं।
मिट्टी में धंस रहे अवशेष: संरक्षण की आवश्यकता
मंदिर के परिसर में बिखरे हुए पत्थरों और उन पर की गई बारीक नक्काशी से स्पष्ट होता है कि यहां कभी एक विशाल और भव्य मंदिर रहा होगा। लेकिन समय के साथ ये पत्थर और मूर्तियां धीरे-धीरे मिट्टी में धंसती जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जमीन के नीचे भी कई महत्वपूर्ण मूर्तियां और शिल्प संरचनाएं दबी हो सकती हैं।
इतिहासकार आदित्य श्रीवास्तव का कहना है कि यह मंदिर 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच का हो सकता है और इसकी शिल्पकला भोरमदेव मंदिर के समकालीन या उससे भी प्राचीन हो सकती है। उन्होंने पुरातत्व विभाग से अपील की है कि इस क्षेत्र में खुदाई और संरक्षण के कार्य शुरू किए जाएं, ताकि छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास के नए पन्ने सामने आ सकें।
ग्रामीणों की मांग: मंदिर का जीर्णोद्धार और पहुंच मार्ग का निर्माण
स्थानीय ग्रामीणों ने बार-बार शासन और प्रशासन से मंदिर के जीर्णोद्धार और वहां तक पहुंचने के लिए एक सुगम मार्ग निर्माण की मांग की है। लेकिन हर बार उनकी आवाज अनसुनी कर दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया, तो यह प्राचीन धरोहर हमेशा के लिए नष्ट हो सकती है।
पर्यटन स्थल बनने की संभावना: आस्था और प्रकृति का संगम
चिल्फी घाटी का यह क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण से भरपूर है। यदि इस मंदिर का जीर्णोद्धार और संरक्षण किया जाए, तो यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बन सकता है, बल्कि एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो सकता है। यहां का इतिहास, वास्तुकला, और प्रकृति का मेल इसे पर्यटकों के लिए एक अनोखा आकर्षण बना सकता है।
संरक्षण के लिए सुझाव और अपील
- पुरातत्व विभाग की पहल: मंदिर की खुदाई, संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए पुरातत्व विभाग को तुरंत सक्रिय होना चाहिए।
- सुगम मार्ग का निर्माण: मंदिर तक पहुंचने के लिए एक पक्का और सुरक्षित रास्ता बनाया जाए।
- पर्यटन को बढ़ावा: इस स्थान को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित किया जाए।
- स्थानीय भागीदारी: ग्रामीणों और स्थानीय संगठनों को मंदिर की देखभाल और संरक्षण में शामिल किया जाए।
- धरोहर का संरक्षण: नष्ट हो रहे पत्थरों और मूर्तियों को संरक्षित करने के लिए वैज्ञानिक और आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाए।
समय रहते उठाया जाए कदम
यह मंदिर न केवल छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि भारत की प्राचीन स्थापत्य कला और धार्मिक इतिहास का साक्षी भी है। यदि सरकार और प्रशासन समय रहते इस ओर ध्यान नहीं देते, तो यह धरोहर धीरे-धीरे मिट्टी में विलीन हो जाएगी।
सरकार को चाहिए कि वह इस मंदिर के संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाए और इसे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान के रूप में विकसित करे। यह न केवल इतिहास के संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम होगा, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।क्या प्रशासन इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की जिम्मेदारी निभाएगा, या यह अनमोल विरासत हमेशा के लिए खो जाएगी?