नई दिल्ली। इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र महीना रमजान 2 मार्च से शुरू हो गया है। इस पूरे महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोज़ा (उपवास) रखते हैं, इबादत करते हैं और जरूरतमंदों की मदद करने पर जोर देते हैं। रमजान को आत्म-संयम, धैर्य और आध्यात्मिक उन्नति का महीना माना जाता है।
क्यों खास है रमजान?
रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है और इसे बेहद पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी महीने में पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) को पहली बार कुरआन का रहस्योद्घाटन (वही) प्राप्त हुआ था। यही कारण है कि इस महीने में कुरआन पढ़ने और इबादत करने का विशेष महत्व होता है।
रोज़ा रखने का महत्व
रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोज़ा रखते हैं। इस दौरान वे कुछ भी खाने-पीने से परहेज करते हैं और गलत कार्यों से दूर रहते हैं। रोज़े का उद्देश्य केवल भूखे-प्यासे रहना नहीं, बल्कि आत्म-संयम और आत्म-शुद्धि को बढ़ावा देना है। इससे धैर्य और सहनशीलता विकसित होती है और व्यक्ति खुदा के करीब आता है।
दान और परोपकार पर जोर
रमजान में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने का विशेष महत्व होता है। मुस्लिम समुदाय इस महीने में ज़कात (दान) और सदका (परोपकार) के जरिए समाज के कमजोर वर्गों की सहायता करता है। इस दौरान मस्जिदों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से भोजन वितरण, कपड़े और अन्य जरूरी सामान बांटने की परंपरा भी है।
शब-ए-क़द्र: हजार महीनों से बेहतर रात
रमजान के अंतिम 10 दिनों में एक रात आती है जिसे लैलतुल क़द्र (शब-ए-क़द्र) कहा जाता है। इस रात को हज़ार महीनों से अधिक पुण्यदायी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात की गई इबादत का बहुत बड़ा सवाब (पुण्य) मिलता है और अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को कबूल करता है।
जन्नत के दरवाजे खुलते हैं
इस्लामिक मान्यता के अनुसार रमजान के दौरान जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नम (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। कहा जाता है कि इस महीने में शैतानों को कैद कर दिया जाता है, जिससे इंसान आसानी से इबादत कर सकता है और नेक रास्ते पर चल सकता है।
रमजान सिर्फ इबादत का महीना नहीं, बल्कि यह भाईचारे, दया, परोपकार और आत्म-संयम का संदेश भी देता है। इस दौरान लोग अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं, अच्छे कर्म करने का संकल्प लेते हैं और खुदा के प्रति अपनी आस्था को मजबूत करते हैं।
