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अबूझमाड़ मुठभेड़ में नक्सलियों को तगड़ा झटका, भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद



“माड़ बचाव” अभियान की बड़ी सफलता, ग्रामीणों में जगी नक्सलमुक्त बस्तर की उम्मीद

नारायणपुर, 18 अप्रैल।
अबूझमाड़ के घने जंगलों में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे “माड़ बचाव” अभियान को एक और बड़ी सफलता हाथ लगी है। कोहकामेटा थाना क्षेत्र अंतर्गत कसोड़-कुमुरादी जंगल में डीआरजी और आईटीबीपी की संयुक्त कार्रवाई में नक्सली भारी मात्रा में विस्फोटक और दैनिक उपयोग की सामग्री छोड़कर फरार हो गए।

जानकारी के मुताबिक, 14 अप्रैल को पदमकोट कैम्प से डीआरजी और आईटीबीपी की 41वीं वाहिनी का संयुक्त बल सर्च ऑपरेशन पर निकला था। 15 अप्रैल को जंगल के भीतर माओवादी कैडरों से आमना-सामना हुआ, जिसके बाद लगभग दो से तीन घंटे तक भारी गोलीबारी हुई। सुरक्षा बलों की सख्त घेराबंदी और जवाबी कार्रवाई के कारण माओवादी अपने ठिकाने छोड़कर भाग निकले।

छह लाख नगद, 11 लैपटॉप और भारी विस्फोटक सामग्री जब्त
मुठभेड़ के बाद की गई तलाशी में सुरक्षा बलों ने तकरीबन 6 लाख रुपये नगद, 11 लैपटॉप, 50 किलो बारूद, 30 किलो शोरा, 2 कुकर बम, 20-20 लीटर पेट्रोल व डीजल, एसएलआर, .303 और 12 बोर के दर्जनों जिंदा कारतूस, कार्डेक्स वायर, नक्सली वर्दी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, दवाइयाँ, जूते-चप्पल, टिफिन और नक्सली साहित्य बरामद किया। बरामद विस्फोटकों को मौके पर ही सुरक्षा मानकों के तहत नष्ट किया गया।

नक्सलियों को अबूझमाड़ में नहीं कोई सुरक्षित ठिकाना : एसपी
नारायणपुर पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार (भा.पु.से.) ने इस सफलता पर कहा, “अबूझमाड़ की विकट परिस्थितियों में निवास करने वाले आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ना हमारी प्राथमिकता है। हम माओवादी कैडरों से अपील करते हैं कि वे आत्मसमर्पण नीति को अपनाकर समाज का हिस्सा बनें।”

2025 की शुरुआत में ही नक्सलियों को भारी नुकसान : आईजी
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. (भा.पु.से.) ने बताया, “2025 की शुरुआत से ही सुरक्षा बलों ने डीकेएसजेडसी, डीव्हीसी, एसीएम जैसे माओवादी संगठनों को गहरी चोट पहुंचाई है। उनका शीर्ष नेतृत्व कमजोर हो चुका है, और अब आत्मसमर्पण ही उनके पास एकमात्र विकल्प है।”

ग्रामीणों में जगी उम्मीद
लगातार हो रही कार्रवाई से अबूझमाड़ के सुदूर ग्रामीण इलाकों में नक्सलमुक्त जीवन की उम्मीद जगी है। भय और दहशत के साए से निकलकर लोग शांति और विकास की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं। ‘‘माड़ बचाव’’ अभियान इन क्षेत्रों को नक्सलमुक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहा है।


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