छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की पाटन तहसील में बसा पाहन्दा (झा) गांव अपने आप में मिसाल बन चुका है। करीब 1200 की आबादी वाले इस गांव की खासियत ये है कि यहां हर तीसरे घर से देश की सेवा में एक जवान तैनात है। कोई सीमा पर तैनात है, कोई अर्धसैनिक बलों में, तो कोई सेना में भर्ती की तैयारी में जुटा है।
देशभक्ति यहां लहू में बहती है
गांव के पहले फौजी ईश्वरी प्रसाद वर्मा आज भी गर्व से कहते हैं, “1994 में जब मैंने पहली बार यूनिफॉर्म पहनी थी, तब सपना देखा था कि एक दिन पूरा गांव देश की सेवा में जुटेगा। आज वो सपना साकार हो चुका है।”
उनके बाद इस गांव से दर्जनों युवा सेना में भर्ती हुए और अब यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

बच्चे इंजीनियर नहीं, सैनिक बनना चाहते हैं
यहां की शासकीय प्राथमिक शाला में पढ़ने वाले बच्चों से जब पूछा जाता है कि बड़े होकर क्या बनोगे, तो जवाब मिलता है—”फौजी!”
प्रधानपाठक टिकेंद्र सिंह ठाकुर बताते हैं, “यहां के बच्चे छोटी उम्र से ही सेना में जाने का सपना देखते हैं। यह गांव का माहौल ही ऐसा है जो उन्हें प्रेरणा देता है।”
सेना की तैयारी है सुबह की दिनचर्या
गांव के मैदान में हर सुबह युवाओं की दौड़ और एक्सरसाइज होती है। ट्रेनिंग दे रहे पूर्व सैनिक और छुट्टी पर आए जवान इन युवाओं का हौसला बढ़ाते हैं। अग्निवीर की तैयारी कर रहे गजेंद्र कुमार कहते हैं, “मुझे मामा जी से प्रेरणा मिली, जो पिछले 17 साल से आर्मी में हैं। अब मेरी बारी है।”
गांव ने दिए हैं शहीद भी, मिसाल भी
इस गांव से देश को मनोज वर्मा और युवराज ठाकुर जैसे वीर शहीद भी मिले हैं, जिनकी शहादत आज गांव के हर बच्चे के सपनों में शामिल हो चुकी है। गांव के युवा बसंत कुमार (BSF) और नंदकिशोर (असम राइफल्स) कहते हैं, “हमें सिर्फ देश की रक्षा नहीं करनी, बल्कि गांव से और सैनिक तैयार करना है।”
पाहन्दा: सिर्फ एक गांव नहीं, देशभक्ति की पाठशाला है
पाहन्दा (झा) आज उस भारत की तस्वीर है, जहां देशभक्ति महज़ नारा नहीं, जीवनशैली है। जहां हर तीसरा घर सिर्फ ईंट और सीमेंट से नहीं, फौलादी जज़्बे से बना है।
सैनिक गांव पाहन्दा (झा) के कुछ तथ्य:
- कुल आबादी: लगभग 1200
- सक्रिय सैनिक: 50+
- पूर्व सैनिक: दर्जनों
- प्रतिदिन प्रशिक्षण में जुटे युवा: 30+
- शहीद जवान: 2 (मनोज वर्मा, युवराज ठाकुर)