डिजिटल दस्तावेजों ने खोली वर्षों पुरानी वित्तीय अनदेखी की परतें
रायपुर।
छत्तीसगढ़ को राज्य बने हुए दो दशक से अधिक का वक्त बीत गया, लेकिन उसके वैधानिक और वित्तीय अधिकारों को लेकर अभी भी कई अनसुलझे सवाल बने हुए हैं। ऐसा ही एक बड़ा मामला अब सामने आया है, जिसमें पता चला है कि राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ के हिस्से की पेंशन देनदारी का बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश सरकार द्वारा रोका गया था। यह खुलासा हाल ही में किए गए दस्तावेजों के डिजिटलीकरण के बाद हुआ।
राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, पिछले एक वर्ष के दौरान कुल 1685 करोड़ रुपये की राशि मध्यप्रदेश सरकार से छत्तीसगढ़ को वापस प्राप्त हुई है। यह राशि उन सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन से जुड़ी है, जो राज्य विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ कैडर में आ गए थे।

मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और सचिव के मार्गदर्शन और टीम के परिश्रम से ही यह हो पाया है। बैंक, एजी व मप्र से समन्वय कर डिजिटल गवर्नेंस से तकनीकी त्रुटि का सुधार कम समय में संभव हुआ।
-रितेश अग्रवाल,संचालक, कोष लेखा पेंशन
20 साल से अधूरी थी वित्तीय पारदर्शिता
1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया, तब तय हुआ था कि दोनों राज्यों के बीच कर्मियों की सेवा-पुस्तिकाएं, पेंशन देनदारियां और भविष्य निधि का बंटवारा होगा।
लेकिन यह प्रक्रिया कागजी स्तर पर वर्षों तक अधूरी रही। नतीजतन, छत्तीसगढ़ सरकार को यह पता नहीं चल पाता था कि कितने कर्मचारी उनके अधीन हैं और किसकी पेंशन का भुगतान मध्यप्रदेश द्वारा किया जा रहा है या रोका गया है।
डिजिटलीकरण बना गेम चेंजर
राज्य सरकार ने पेंशन और सेवा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण कर इस गुत्थी को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
इस प्रक्रिया में यह उजागर हुआ कि हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारी ऐसे हैं, जिनकी पेंशन राशि का भुगतान मध्यप्रदेश से होना था, लेकिन वर्षों से वह रोक दी गई थी।
विशेष सचिव (वित्त) के अनुसार, डिजिटल डेटा के आधार पर की गई पड़ताल में 2024-25 के वित्तीय वर्ष में 1685 करोड़ रुपये छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से मिले हैं।
राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
इस घटनाक्रम को छत्तीसगढ़ सरकार ने वित्तीय हक की वापसी बताया है।
राज्य के पूर्व वित्त सचिव ने कहा, “यह मामला सिर्फ पेंशन तक सीमित नहीं है। यह राज्य के आर्थिक अधिकार, प्रशासनिक ईमानदारी और पारदर्शिता से जुड़ा मामला है।”
दूसरी ओर, मध्यप्रदेश सरकार की ओर से अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि अन्य विभागों और मदों में भी इसी तरह की समीक्षा हो, तो और भी बड़ी वित्तीय अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं।
क्या अब अन्य विभागों की जांच होगी?
जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार अब अन्य मदों — जैसे राजस्व संग्रह, पीडब्ल्यूडी संपत्ति, वन विभाग की परिसंपत्तियां, और जल संसाधन परियोजनाएं — को लेकर भी विस्तृत लेखा-जोखा तैयार कर रही है।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “पेंशन बंटवारे का मामला तो महज एक शुरुआत है। आने वाले महीनों में कई और वित्तीय मामलों की परतें खुल सकती हैं।”
राज्य विभाजन के बाद दोनों राज्यों के बीच वित्तीय पारदर्शिता की जो दरार थी, वह अब तकनीक की मदद से भरने की दिशा में बढ़ रही है। यह प्रकरण न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की सीख देता है, बल्कि डिजिटलीकरण के महत्व को भी दर्शाता है।
