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क्या आप जानते है – सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा है राखी पर्व, 6 हजार साल पुरानी परंपरा

हमारे देश में राखी का त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ बनाया जाता है। बहन द्वारा भाई की कलाई पर राखी बांधने का सिलसिला बेहद प्राचीन है। हर भाई-बहन के लिए रक्षाबंधन का त्यौहार बहुत खास होता है। रेशमी डोर के स्नेह बंधन में बहनें भाइयों को आजीवन बांधे रखती हैं। भाई और बहन की आत्मा को बांधे रखने वाले इस त्यौहार का नाम है राखी। रक्षाबंधन बहनों की भाइयों के प्रति भावनाओं को अभिव्यक्त करने का त्यौहार है। भाई की कलाई पर राखी बांधकर बहनें उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं। यह राखी बड़े महीन लेकिन मजबूत धागे से बनी है। इस राखी की यही शर्त है कि विश्वास की रेशम डोर दुनिया के ताने-बाने में कभी ना उलझ पाए। यानी हर हाल में भाई का बहन के प्रति और बहन का भाई के प्रति विश्वास बरकरार रहे।

राखी की परम्परा सगी बहनों ने शुरू नहीं की थी
रक्षा बंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि राखी की परम्परा सगी बहनों ने शुरू नहीं की थी। तब किसने शुरू किया राखी का चलन? आइए जानें क्या है राखी का इतिहास:

6 हजार साल पुरानी परंपरा
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्यौहार की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

विदेश में बसे लोगों को भी भाती है राखी
बहनों को जहां भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बांधने का बेसब्री से इंतजार होता है, वहीं देश ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे भाइयो को भी इस बात का इंतजार रहता है कि उनकी बहनें उन्हें अवश्य ही राखी भेजेंगी। सगी बहन नहीं तो भी कोई समस्या नहीं हमारे देश में मुंहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। इसलिए उन भाइयों को भी निराशा का सामना नहीं करना पड़ता जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है क्योंकि, असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने शुरू की थी जो सगी नहीं थीं।

बरकरार है राखी पर्व की मान्यता
भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस पर्व की मान्यता बरकरार है।

राणी कर्णावती व सम्राट हुमायूं
रक्षाबंधन की शुरुआत के सबसे पहले ऐतिहासिक साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।

सिकंदर की जान बचाई थी इस राखी ने
दूसरा साक्ष्य एलेग्जेंडर व पुरु के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला एलेग्जेंडर भारतीय राजा पुरु की प्रचंडता से काफी विचलित हुआ। इससे एलेग्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उन्होंने रक्षाबंधन के त्यौहार के बारे में सुना था। उन्होंने भारतीय राजा पु पुरु को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरु ने एलेग्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।

द्रौपदी और कृष्ण से जुड़ी है राखी
इतिहास का तीसरा साक्ष्य पौराणिक काल से है। कृष्ण व द्रौपदी को इसका श्रेय जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की अंगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रौपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की अंगुली में बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।

अब महंगी राखी को मिलती है तवज्जो
खैर, यह तो हुई रक्षाबंधन के त्यौहार से जुड़ी ऐतिहासिक बातें। हाल-फिलहाल की बात करें तो रक्षाबंधन के त्यौहार पर अब सिर्फ साधारण राखी को नहीं बल्कि महंगी व खास किस्म की राखियों को खासा तवज्जो दिया जा रहा है।
पहले के समय के मुकाबले आज भारतीय बाजार में चीन के राखियों की भरमार है। बहनें भी प्यार के इस बंधन को अपने भाइयों तक सुरक्षित भेजने के लिए वॉटरप्रूफ लिफाफों का इस्तेमाल करती हैं।

त्याग, संयम, प्रेम, मैत्री का संकल्प
रक्षाबंधन पर्व पर राग-द्वेष से ऊपर उठकर मैत्री का विकास करें एवं त्याग, संयम, प्रेम, मैत्री और अहिंसा को अपने जीवन में बनाने का संकल्प लें।

रक्षाबंधन का इतिहास करीब 6 हजार साल पुराना है, रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है।

जानकारों कि माने तो रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। वहीं रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जिसका इतिहास करीब 6 हजार साल पुराना है, रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।

रक्षाबंधन का दूसरा इतिहास भगवान कृष्ण और द्रोपदी से जुड़ा हुआ है। जब कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा तो युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया।

माना जाता है कि तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया। द्रोपदी को बहन मानने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने अपनी बहन की रक्षा उस समय की जब किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।

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