कोरिया / अगर आप के अंदर नेतृत्व की क्षमता नही है तो आपको सही सलाहकार रखने चाहिए या तो स्वयं को किसी शासक के सामने नतमस्तक रखना होगा। कोरिया की राजनीति में बीते 3 बरस में हुए राजनीतिक घटनाओं को गम्भीरता से देखेंगे तो यह बात आपको स्वयं समझ में आ जाएगी की एक जनप्रतिनिधि मे स्वयं का अहंकार पूरे क्षेत्र के लिए अभिशाप बन गया और एक ने सिर्फ सनकी शासक की कदमबोसी से सब कुछ पा लिया।
चलिए शुरुआत करता हूँ एक ऐसे जिले के आन्दोलन, आरम्भ, विकास से, जो युवा होते ही पंगुता की ओर बढ़ चला। पहले आज की युवा पीढ़ी को इतिहास के पन्नो से जोड़ता चलूं। सँयुक्त मध्यप्रदेश में 90 का दशक एक लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण कहा जाता है क्योंकि रियासती नेतृत्व से उभरे हुए इंजीनियर मुख्यमंत्री ने जन्हा किले वँहा जिले की तर्ज पर 16 नए जिला मुख्यालय बना दिए। यह एक ऐसा निर्णय था जो वाकई निर्णायक था। 15जगहों पर कोई विशेष विरोधाभास नही हुआ परन्तु कोरिया जिले का गठन लम्बी उधेड़बुन और सियासी घटनाक्रम लेकर आया। एक ओर कोरिया जिले की अधिसूचना जारी हुई वन्ही दूसरी ओर उस जिले का प्रमुख शहर ज्वलनशील हो गया। राज्य परिवहन की कई बसों को आग में झोंकने के बाद एक सिपाही की वर्दी भी जलाई गई। कर्फ्यू लगा, शासन ने फिर वह सब कुछ किया जो किया जा सकता था। महीनों तक वह शहर बन्द रहा जिसका नामकरण कोरिया रियासत के ही एक सदस्य के नाम पर ही किया गया था। अब बात करें उस समय कोरिया के नेतृत्व कर्ता की, जी हां डॉ रामचंद्र जी सिंहदेव, सर्वमान्य विद्वान नेता, एक फकीर की हैसियत से 25 बरस कोरिया की बागडोर कस कर पकड़ने वाले कोरिया कुमार की सादगी और कर्मठता के आगे कभी भी धनबल और गलत सन्तरी भारी नही पड़ सके। उन्होंने पूरी दृढ़ता से बैकुंठपुर को कोरिया के लिए मुख्यालय घोषित कराया और उनकी सोच इस मायने में भी सही समझी जा सकती थी कि व्यापारिक शहर किसी प्रशासन की मदद या कहें मुख्यालय होने का इन्तेजार नही करता है, वह खुद ब खुद बढ़ता जाता है। ऐसा सच भी हुआ, कस्बे से शहर बनने में बैकुंठपुर को 25 साल लगे परन्तु मनेन्द्रगढ़ में व्यवसाय में वृद्धि निरन्तर होती रही। अब बात कोरिया जिला गठन होने पर उठे बवाल की करें तो यह बात भी लंबे समय तक गली गली में चर्चा का सबब बनी रही कि पूरे वाकये के दौरान उस व्यापारिक शहर में तत्कालीन सत्ता प्रमुख का कुर्ता तक फाड़ दिया गया था। खैर यह हुई बात 1998 की, अब 2000 में अटल बिहारी जी की सत्ता ने राज्य के सपने को साकार कर दिया, सत्ता का केंद्र भोपाल की जगह रायपुर हो गया। इस बीच अगर कुछ नहीं बदला तो वह था डॉक्टर सिंहदेव का कद और रुतबा। वह राज्य के प्रथम वित्तमंत्री बने, फिर भाजपाई सरकार ने उन्हें लोक लेखा समिति में जगह दी, उन्हें कई बार सार्वजनिक रूप से सम्मानित भी किया गया। उन्होंने चुनाव न लड़ने के स्वनिर्णय में जिसे अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास किया कदाचित वह अपने आधे-अधूरे प्रयास और गलत सलाहकार समिति के कारण कुर्सी नही पा सके। यह दो बार हुआ। इस बीच लगातार एक किसान का बेटा, या कहें कोयला कामगार, या कहेंगे फुल टाइम नेता, सरपंच,जनपद अध्यक्ष, जिला सदस्य से होते हुए बैकुंठपुर की जनता का हरवाह(नियंत्रित मजदूर शब्द का स्थानीय शब्द) बनकर पहले विधायक और फिर केबिनेट मंत्री बना। कोरिया की सियासत में सरगर्मियां कभी कम कभी ज्यादा जरूर होती रही परन्तु सत्ता में बैठे लोगों के लिए बैकुंठपुर सीट से चुना हुआ प्रतिनिधि, हमेशा महत्वपूर्ण रहा। चुनाव 2018 आते आते, कोरिया की रियासत में फिर एक नई हलचल से कोरिया की राजनीति में उठापटक तेज हुई। परन्तु जैसा कि सर्वविदित है कि देश की आजादी का जिम्मा लेने वाली पार्टी ने सिंहदेव का कर्ज उतारने के लिए उनकी वारिस को अपना राजनैतिक प्रतिनिधित्व सौंप दिया। लम्बे समय से अपना सब कुछ लगाकर संघर्ष करने वाले पुनः उसी उत्साह से झंडाबरदार बन गए और 10 साल तक सत्ता में रहे केबिनेट मंत्री जी अपने घटिया सलाहकारों के चक्रव्यूह में फंसकर कुर्सी खो बैठे। इसका दूसरा बहुत ही महत्वपूर्ण कारण बना कोरिया कुमार के सपनों को पूरा करने वाला सरल सादगीपूर्ण भरोसा। जी हाँ भरोसा, यह एक ऐसी मान्यता है जो सदैव शासकों के ही साथ रही है। जनता ने चुना और वह दिन शायद अब पूरे कोरिया की राजनीति का वह निर्णय बन गया जिसे इतिहास जरूर याद रखेगा। जिस कोरिया के फकीर ने जिले का उत्थान समता के साथ करने का महान काम किया था, उनके जाते ही उनके सपनों को साकार करने का भरोसा दिलाने वालों ने बैकुंठपुर को सिर्फ दो ब्लॉक के जिले में समेट कर रख दिया। एक कहावत यह भी है कि जब तो हाथी लड़ते हैं तो घास को नुकसान होने तय है। राजनीतिक जानकर बताते हैं कि राजमहल को कमजोर करने की सियासत में महारथ हासिल कर चुके सरकार ने तुगलकी फरमान जारी कर दिया अब इसी महीने में एक नया जिला नक्शे पर दिखेगा, परंतु क्षेत्र के नेतृत्व का जिम्मा लेने वाले कि बेशर्मी इतनी की स्वयं के अस्तित्व को सिमटते हुए देखकर भी दूसरों को मिठाई खिलाकर प्रसन्नता का इजहार किया गया। विरोध करने के लिए चन्द लोग उतरे तो वह इतना बुलन्द नही हो पाया जितना होना चाहिए था क्योंकि जब चुना हुआ नेतृत्व, खुलकर विरोध करने की स्थिति में न हो तो आप एक वृहद आंदोलन की या विरोध की सोच नही सकते।
बहरहाल आगामी 9 तारीख को एक जिंदा शहर अपने नए आगाज की ओर पहला कदम उठाने जा रहा है और कोरिया कुमार के सपने पूरे हुए हैं या चकनाचूर, यह अब बैकुंठपुर विधानसभा चुनाव तय करेंगे।

