Sunday, January 26, 2025
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3 चीजें नहीं है तो पैसा, खूबसूरती सब बेकार, जानिए क्या कहते हैं आचार्य चाणक्य

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नई दिल्ली : कामयाबी हासिल करने के लिए हमेशा सही मार्ग का चयन करना चाहिए। सही मार्गदर्शन न केवल व्यक्ति को आगे बढ़ाता है, बल्कि जीवन से जुड़े कई अन्य पहलुओं से भी मनुष्य परिचित होता है। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए शिक्षित होना बेहद जरूरी है। लेकिन अपने नैतिक गुणों का ज्ञान होना उससे भी अधिक आवश्यक माना गया है।

चाणक्य नीति के अनुसार इंसान की पहचान उसके गुणों से होती हैं। गुण ही मनुष्य को दूसरे व्यक्ति से अलग बनाते हैं। चाणक्य के इस नीति शास्त्र में जीवन से जुड़े कई विषयों का भी जिक्र किया है। साथ ही उस व्यक्ति का भी उल्लेख है, जिसमें मौजूद सभी गुण उसे महान बनाते हैं। लेकिन आचरण सही न होने के कारण उनकी महत्ता कम होती है। ऐसे में आइए इनके बारे में जान लेते हैं।

गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।
सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम् ।।

आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का अर्थ है कि गुणों से मनुष्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है। शील से कुल की शोभा होती है। इसके अलावा कार्यों में सफलता प्राप्त करने से विद्या शोभित होती है, और धन का सही उपयोग करने से धन की शोभा बढ़ती है। इस श्लोक से ज्ञात होता है कि अगर इंसान की देह सुंदर है, परंतु उसमें गुणों का अभाव है, तो ऐसी सुंदरता किसी काम की नहीं होती है। माना जाता है कि हमेशा अच्छे आचरण की वजह से ही कुल की शोभा होती है।

निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्।
असिद्धस्य हता विद्या अभोगेन हतं धनम्।।

इस श्लोक का अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति में किसी भी तरह का गुण नहीं है, तो उसका रूपवान होना व्यर्थ होता है। इसके अलावा आचार्य चाणक्य का मानना है कि जिस इंसान के आचरण में श्रेष्ठता नहीं होती, उसकी कुल में निंदा होती है। अगर किसी इंसान में किसी भी कार्य को सिद्ध करने की शक्ति नहीं, तो उसकी विद्या व्यर्थ मानी जाती है।

नाग्निहोत्रं विना वेदा न च दानं विना क्रिया।
न भावेन विना सिद्धिस्तस्माद्भावो हि कारणम् ।।

आचार्य चाणक्य के इस श्लोक का अर्थ है कि कर्मों के बिना वेदों का अध्ययन व्यर्थ होता है, और दान-दक्षिणा के बिना यज्ञ आदि कर्म निष्फल माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हमेशा उसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए, क्योंकि बिना इसके किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती है। चाणक्य के अनुसार इंसान की भावना और उसके विचार ही सफलता का सबसे बड़ा कारण होती है।

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