Friday, April 26, 2024
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SC ने केंद्र सरकार से कहा, जरूरतमंदों के लिए शुरू करें हेल्प लाइन नंबर

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नई दिल्ली / उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से पलायन करने वाले कामगारों के स्वास्थ्य और उनके प्रबंधन से जुड़े मुद्दों से निबटने के वह विशेषज्ञ नहीं है. उन्होंने कहा, बेहतर होगा कि सरकार जरूरतमंदों के लिए हेल्पलाइन शुरू करे.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.पलायन करने वाले कामगारों के जीवन के मौलिक अधिकार की रक्षा और लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हुए श्रमिकों को उनका पारिश्रमिक दिलाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज ने यह दायर की थी.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले एक जनहित याचिका पर सरकार से जवाब मांगा था और उसने इस स्थिति से निबटने के बारे में उसके जवाब पर संतोष व्यक्त किया था. पीठ ने कहा था कि सरकार स्थिति पर निगाह रखे है और उसने इन कामगारों की मदद के लिए हेल्पलाइन भी शुरू की है.

13 अप्रैल तक के लिए स्थगित की गई सुनवाई

पीठ ने इस याचिका की सुनवाई 13 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी और कहा, हम सरकार के विवेक पर अपनी इच्छा नहीं थोपना चाहते. हम स्वास्थ्य या प्रबंधन के विशेषज्ञ नहीं है और सरकार से कहेंगे कि शिकायतों के लिए हेल्पलाइन बनाए. पीठ ने कहा कि वह इस समय बेहतर नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती और वैसे भी अगले 10-15 दिन के लिए नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती.

याचिककर्ता के वकील न रखी ये दलील
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि चार लाख से अधिक कामगार इस समय आश्रय गृहों में हैं और यह कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए परस्पर दूरी बनाने का मखौल बन गया है. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें आश्रय गृहों में रखा जा रहा है और उनमें से किसी एक व्यक्ति को भी कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया तो फिर सारे इसकी चपेट में आ जाएंगे.उन्होंने कहा कि इन कामगारों को अपने अपने घर वापस जाने की अनुमति दी जानी चाहिए. उनके परिवारों को जिंदा रहने के लिए पैसे की जरूरत है क्योंकि वे इसी पारिश्रमिक पर निर्भर हैं. भूषण ने कहा कि 40 फीसदी से ज्यादा कामगारों ने पलायन करने का प्रयास नहीं किया और वे शहरों में अपने घरों में रह रहे हैं लेकिन उनके पास खाने पीने का सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं है.

कामगारों को आश्रय गृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा
इस पर पीठ ने कहा कि उसे बताया गया है कि ऐसे कामगारों को आश्रय गृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की क्या जरूरत है. केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार स्थिति पर निगाह रखे हैं और उसे मिलने वाली शिकायतों पर ध्यान भी दे रहे हैं. इसके लिये कॉल सेन्टर बनाया गया है. गृह मंत्रालय और मंत्री हेल्पलाइन की निगरानी भी कर रहे हैं. इस दौरान पीठ ने कहा कि न्यायालय ऐसी शिकायतों की निगरानी नहीं कर सकता कि किसी आश्रय गृह में कामगारों को दिया गया भोजन खाने योग्य नहीं था.

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