रिपोर्ट / मनीष सोनी / 09770388989
00 पर्यावरण को बचाने के लिए एक शख्स सुशील कुमार जीवनदायिनी ग्लूकोज की बोतलों से पौधों की जान बचा रहे हैं…
सरगुजा / जब किसी का जीवन संकट में होता है, तब जीवन बचाने के लिए सबसे पहले उसे ग्लूकोज की बोतल चढ़ाई जाती है, लेकिन उसके बाद इस बोतल की कोई कीमत नहीं होती। खाली बोतल को मेडिकल वेस्ट के साथ नष्ट कर दिया जाता है। लेकिन 22 साल के सुशील कुमार इन बेकार बोतल से पेड़ों को जीवन दे रहे हैं। सुशील कुमार इन बेकार बोतलों का इस्तेमाल गर्मी में पौधों को बचाने के लिए कर रहे हैं। उन्होंने उपयोग में लाई जा चुकीं बोतलों के इस्तेमाल से सिंचाई का एक नया तरीका ईजाद किया है। इस तरीके का इस्तेमाल वे शिक्षा कुटीर संस्था, बरगई के उन पेड़ों के लिए कर रहे हैं जिन्हें विद्यालय के विद्यार्थियों के नाम पर उनके पालकों ने लगाया है।
जुर्माने में लगाने पड़ते हैं पेड़
बच्चों की फीस और जुर्माने के रूप में बरगईं में ग्राम वाटिका में 50 से ज्यादा पौधे लगे हैं जिसे जिंदा रखने के लिए पालक सुबह-शाम पानी डालते हैं। लेकिन भीषण गर्मी और वाष्पीकरण बढ़ने से पानी जल्द सूख जाता है तो ऐसी स्थिति में सुशील कुमार ने एक अलग तरीका निकाला है।
कैसे किया यह सब
ऐसे में सुशील कुमार ने हॉस्पिटल से ग्लूकोज की खाली बोतलें एकत्रित कीं और उनको पीछे से आधा काटकर ट्रीगॉर्ड पर डंडे के सहारे लटका दिया और अब ग्लूकोज की इस बोतल से पौधे की जड़ों को बूंद-बूंद पानी मिल रहा है। इस विधि से पालकों को पौधों में बार-बार पानी भी नहीं डालना पड़ रहा है और पानी वाष्पीकृत भी नहीं हो रहा है!
कैसे आया आयडिया
दरअसल, इस तरह की बेकार ग्लूकोज की बोतलों के सदुपयोग का आयडिया भी कम दिलचस्प नहीं है। एक दिन गांव वाले जब इस बात पर मंथन कर रहे थे कि कौन-सा तरीका अपनाया जाए जिससे कि पौधों की जड़ों में पानी तुरंत न सूखे। उस समय सुशील अपनी चाची को हॉस्पिटल में ग्लूकोज चढ़वाकर लौटे थे।
जब उन्होंने लोगों की समस्याएं सुनीं तभी उनके दिमाग में ये आयडिया तुरंत आ गया। उन्होंने गांव वालों को समाधान सुझाया और हॉस्पिटल से खाली बोतलें लेकर आए और उसे काटकर पौधों के ऊपर लटका दिया और पालकों को बताया कि पहले पानी इन बोतलों में डालें उसके बाद बचा पानी जड़ों को दें।
विधि से लोगों को है राहत
अब इस विधि से दिनभर पौधों को बूंद-बूंद पानी मिलता है जिससे हमेशा जड़ों में नमी बनी रहती है। इस तरीके से पालक बेहद खुश हैं कि उनके पौधे गर्मियों में सूख नहीं पाएंगे और बोतलों की वजह से जी जाएंगे।
कर रहे हैं जागरूक
सुशील कुमार पेशे से पत्रकार हैं, लेकिन पेड़-पौधों से उन्हें विशेष लगाव है, क्योंकि वे बचपन से इन्हीं पेड़-पौधों के बीच पले-बढ़े हैं। वे शहरों में बढ़ते कांक्रीटीकरण और कटते पेड़-पौधों से आहत हैं। वे अपने बैग में अब ऐसी बोतलें लेकर चलते हैं। उनका कहना है कि वे लोगों के बुलाने पर लोगों के घर और बगीचे में लगे पौधों को पानी देने के लिए बॉटल लगाने चले जाते हैं तथा जागरूकता के लिए वे इसका डोमेस्टिकरण करके बताते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सीख और समझ सकें। सुशील गर्मियों में जंगलों में लगने वाली आग से भी खासे आहत हैं। जब भी वे काम के सिलसिले में जंगल की तरफ जाते हैं और उन्हें आस-पास आग लगी दिखती है तो उसे बुझाने के बाद ही आगे बढ़ते हैं।