00 दस घण्टे पहले सर्प दंश से हुई थी मौत
अम्बिकापुर / हम इक्कीसवीं सदी में होने का दावा करते नहीं थकते लेकिन इसी इक्कीसवीं सदी के भारत में यह एक बदनुमा दाग ही है जो अंधविश्वास के नाम से जाना जाता है. दरअसल बेजान पड़ी लाश को जिन्दा करने के लिए तंत्र मंत्र का प्रयोग किया गया और यह प्रयोग कहीं और नहीं बल्कि जिला अस्पताल परिसर में ही पुरे एक घण्टे तक चला।
जानकारी के मुताबिक सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम राधापुर की रहने वाली आठवीं की छात्रा प्रीति पिता सोमारू मिंज अपनी दादी, छोटे भाई के साथ और दिनों की तरह ज़मीं पर सोई थी. उसी रात प्रीति को जहरीले सर्प करैत ने दस लिया. सांप द्वारा डसे जाने का पता चलते ही परिजनों ने सांप को धुंध कर मार दिया था और आहत प्रीति को उपचार के लिए सीतापुर सामुदयिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए थे. जहाँ से उसकी हालत गम्भीर होने की वजह से उसे जिला अस्पताल अम्बिकापुर के लिए रेफर कर दिया गया था. प्रीति को बीती रात 2 बजे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन तक़रीबन 3 बजे उसने दम तोड़ दिया. मौत के बाद उसके शव को जिला अस्पताल के मर्चुरी में रखवा दिया गया था. वहीँ सोमवार की सुबह जब मृतिका का शव पोस्टमार्टम के लिए निकाल गया तो के परिजनों ने पोस्टमार्टम करने से पहले बैग से शव की झाड़ फूंक कराने लगे. मृतिका के परिजन जशपुर बगीचा से बैग शिव प्रसाद को लेकर आये थे. बैगा का दावा था की उसने कई इसी तरह के मामलों में पीड़ित लोगों को ठीक किया है. अपने इसी दावे के साथ बैगा ने दस घण्टे पहले लाश में तब्दील प्रीति के पास बैठ कर उसे जिन्दा करने की कवायत शुरू की. मंत्र पढ़ कर झाड़ फूंक करता रहा. तंत्र मंत्र का यह खेल पुरे एक घण्टे तक चलता रहा. लेकिन लाश पर कोई असर नहीं हुवा. अपनी बच्ची की लाश पर कोई असर होता नहीं देख कर परिजनों की चीख पुकार निकलने लगी. मृतिका के परिजनों का रुदन सुन कर वहां अस्पताल में मौजूद पुलिस सहायता केंद्र की पुलिस भी मौके पर पहुँच गई थी. जिसके बाद काफी समझाइश के बाद झाड़फूंक की कवायत पर विराम लग सका।
“सर्प दंश की तरह रगों में फैलता अंध विश्वास “
सर्प दंश के बाद जिस कदर सांप का जहर इंसान की रगों में फ़ैल कर उसे बेजान बना देता है उसी तरह पढ़े लिखे सभ्य समाज में भी आज के दौर में सरगुजा क्षेत्र के कई ऐसे इलाके है जहाँ लोग सर्प दंश सहित कई तरह की बिमारियों के उपचार के लिए डॉक्टरी इलाज की जगह झाड़ फूंक का सहारा लेते है. कई बार तो देखने यहाँ तक आया है की सर्प दंश जैसे कई मामलों में अन्धविश्वास के फेर में पड़ कर बैगा गुनिया के चक्कर में पड़ जाते हैं और झाड़ फूंक कराने की वजह से हुई देरी के कारण पीड़ित की मौत तक हो जाती है. बहरहाल अन्धविश्वास को जड़ से ख़त्म करने की साड़ी कवयते नाकाफी साबित हो रही है. सरकार को इस ओर और ज्यादा ध्यान देने के साथ साथ समाज को भी जागरूक होने की जरुरत है ।
