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भरतपुर – सोनहत सीट में घमासान, BJP एंटीइंक्म्बेंसी तो कांग्रेस अपनो से परेशान 

कोरिया / छत्तीसगढ़ में प्रथम विधानसभा होने का गौरव प्राप्त भरतपुर – सोनहत विधानसभा में वर्तमान विधायक को लेकर मतदाताओं के बीच नाराजगी का भाव है। एंटी इंक्म्बेंसी यानि विरोधी लहर में सवार चंपा देवी के प्रति भारी विरोध नजर आ रहा है। जिस पर पार पाना किसी चुनौती से कम नहीं है।

काले रंग का असर – मुख्यमंत्री रमन सिंह के जनकपुर दौरा के समय काले झंडे दिखाई जाने के डर से पुलिस द्वारा किया गया बर्ताव को क्षेत्र की जनता चाह कर भी भूला नहीं पा रही है। ऐसा ही नजारा newspage13.com को देखने को मिला जब बहरासी से सटे ग्रामीण क्षेत्र के जंगल में जानवरों को चराते हुए मिले लोगो से चुनाव पर बात की तो लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, ग्रामीणों का कहना था कि प्रदेश के मुखिया को सुनने गये परंतु काले कपड़े के कारण जिस प्रकार महिलाओं व लड़कियों के दुप्पटे तक उतरवा लिए इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

चहेतो को लाभ – जिस प्रकार पांच सालो तक अपने चुनिंदा लोगो को एकतरफा लाभ पहुँचाया इस बात को लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष का भाव नजर आता है। अपने अनुशासित कार्यकर्ताओं के नाम से जाने जानी वाली पार्टी इस बार नाराजगी के कारण मुश्किल का सामना कर रही है।

स्वेच्छानुदान का जिन्न फिर आया सामने – सक्षम एवं अपने करीबी लोगों को रेबडी की तरह स्वेच्छानुदान की राशि का बंदरबांट किया जाने का आरोप लगा था। वह मुद्दा फिर चर्चा में है। खास बात यह कि मनेंद्रगढ निवासी, ठेकेदारी का काम करने वाले जिसने पांच साल करीबी होने का फायदा उठाया, उनकी पत्नी के नाम भी स्वेच्छानुदान की राशि जारी की ग ई थी। जिसको अन्य पार्टी मुद्दा बना कर भुनाने का कोई कसर नहीं छोड रही है।

कांग्रेस की राह नहीं आसान…

कांग्रेसी ही कांग्रेसी को हराता है। यह कहावत भरतपुर – सोनहत में चरितार्थ नजर आती है। जहाँ वर्तमान कांग्रेसी उम्मीदवार गुलाब कमरो को भा ज पा के साथ साथ अपनो की चुनौती का भी सामना करना पड रहा है। पार्टी से बगावत कर नामांकन दाखिल कर अपने मंसूबो को जगजाहिर कर चुके जिला पंचायत सदस्य शरण सिंह का अंतिम समय पर नामांकन वापस नहीं लेने के कारण निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव चिन्ह भी आबंटित हो चुका है। शरण सिंह के द्वारा लाख सफाई देने के बावजूद इनके रूख को राजनीति के जानकार कांग्रेस के लिए नुकसान दायक मान रहे हैं।

संसाधनों की कमी – पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंह देव ने इसलिए चुनाव लडने से इंकार कर दिया था कि वर्तमान दौर में बिना खर्च किए चुनाव लडना सम्भव नहीं है। यह बात सही भी है। कि चुनाव लडना व जीतना बिना संसाधन के नहीं हो सकता और अगर सामने मजबूत प्रत्याशी हो तो और भी जरूरी हो जाता है।

बहरहाल अपनी अपनी कमजोरीयो एवं उपलब्धि के साथ दोनों ही प्रमुख दल जनता की अदालत में खड़े है। अब देखना है पिछले दो चुनाव की तरह नए चेहरे को जनता मौका देती है या वर्तमान पर भरोसा कर एक बार फिर विधानसभा की दहलीज पर चढने का अवसर प्रदान करेगी ।

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