क्या आपको मालूम है की फिल्म मुग़ल-ए-आज़म को 60 वर्ष पुरे हो गए है यह हिन्दी भाषा की एक फ़िल्म है जो 5 अगस्त 1960 में प्रदर्शित हुई। यह फ़िल्म हिन्दी सिनेमा इतिहास की सफलतम फ़िल्मों में से है। इसे के॰ आसिफ़ के शानदार निर्देशन, भव्य सेटों, बेहतरीन संगीत के लिये आज भी याद किया जाता है और इस फिल्म को बनने में 14 साल लग गए थे और इस फिल्म के निर्देशक आसिफ ने खर्च कर दी थी सारी दौलत.
आज हम मुग़ल-ए-आज़म को 60 वर्ष पुरे होने पर फिल्म से जुड़ी कुछ अनसुने और कुछ दिलचप्स बातों के साथ आए हैं, तो चलिए हिंदी सिनेमा जगत की सुपरहिट फिल्म मुग़ल-ए-आज़म की बात शुरू करते है. सबसे पहले हम बात करते है फिल्म से जुड़े किरदारों की इस फिल्म में जो थे जिन्होंने जिनके नाम से किरदार निभाया.
- दिलीप कुमार – शहजादा सलीम
- मधुबाला – अनारकली
- पृथ्वीराज कपूर – बादशाह जलालुद्दीन अकबर
- दुर्गा खोटे – महारानी जोधा बाई
- निगार सुल्ताना – बाहर, राजनर्तकी
- अजीत – दुर्जन सिंह
- एम कुमार – संगतराश, शिल्पी
- मुराद – राजा मान सिंह
- जलाल आग़ा – युवक सलीम
- विजयलक्ष्मी
- एस नज़ीर
- सुरेन्द्र
- जॉनी वॉकर
- तबस्सुम
फ़िल्म की कहानी पर नजर डाले तो अकबर के बेटे शहज़ादा सलीम (दिलीप कुमार) और दरबार की एक कनीज़ नादिरा (मधुबाला) के बीच में प्रेम की कहानी दिखाती है। नादिरा को अकबर द्वारा अनारकली का ख़िताब दिया जाता है। फ़िल्म में दिखाया गया है कि सलीम और अनारकली में धीरे-धीरे प्यार हो जाता है और अकबर इससे नाखुश होते हैं। अनारकली को कैदखाने में बंद कर दिया जाता है। सलीम अनारकली को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करता है। अकबर अनारकली को कुछ समय बाद रिहा कर देते हैं। सलीम अनारकली से शादी करना चाहता है पर अकबर इसकी इजाज़त नहीं देते। सलीम बगावत की घोषणा करता है। अकबर और सलीम की सेनाओं में जंग होती है और सलीम पकड़ा जाता है। सलीम को बगावत के लिये मौत की सज़ा सुनाई जाती है पर आखिरी पल अकबर का एक मुलाज़िम अनारकली को आता देख तोप का मुँह मोड देता है। इसके बाद अकबर अनारकली को एक बेहोश कर देने वाला पंख देता है जो अनारकली को अपने हिजाब में लगाकर सलीम को बेहोश करना होता है। अनारकली ऐसा करती है। सलीम को ये बताया जाता है कि अनारकली को दीवार में चिनवा दिया गया है पर वास्तव में उसी रात अनारकली और उसकी माँ को राज्य से बाहर भेज दिया जाता है।
इसके बाद बतादे की इस फिल्म के लगभग सभी गाने सुपरडुपर हिट हुए थे फिल्म के ज्यादातर गानों को लता दीदी ने अपनी आवाज दी थी ——जैसे “मोहे पनघट पे”लता मंगेशकर “प्यार किया तो डरना क्या”लता मंगेशकर “मुहब्बत की झूठी”लता मंगेशकर“हमें काश तुमसे मुहब्बत”लता मंगेशकर“बेकस पे करम कीजिए”लता मंगेशकर“तेरी महफ़िल में”लता मंगेशकर, शमशाद बेगम“ये दिल की लगी”लता मंगेशकर“ऐ इश्क़ ये सब दुनियावाले”लता मंगेशकर“खुदा निगह्बान”लता मंगेशकर“ऐ मुहब्बत जिंदाबाद”मोहम्मद रफ़ी “प्रेम जोगन बनके”उस्ताद बड़े ग़ुलाम आली खाँ“शुभ दिन आयो राजदुलारा”
मशहूर बॉलीवुड फिल्म डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ ने 3 ही फिल्में निर्देशित कीं जिनमें से एक फिल्म पूरी भी नहीं हो पाई, इसके बाद भी वो अपने काम करने के अंदाज के लिए मशहूर हैं. आसिफ अपनी फिल्म मुगल-ए-आजम से मशहूर हुए थे. के. आसिफ की फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे. ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जो उस समय के हिसाब से बहुत ज्यादा मानी जाती है. फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए, ये वो उस दौर की वो रकम थी जिसमें एक पूरी फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी. 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था. इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी. उस गाने को आज तक उसके बेहतरीन फिल्मांकन के लिए याद किया जाता है. उसी फिल्म के एक और गाने ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ के लिए मोहम्मद रफ़ी के साथ 100 गायकों से कोरस गवाया गया था. इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी चीज़ पर गौर किया गया था.
