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कल से सदैव के लिए डूब जाएगा भरतपुर का भविष्य, कल से नए जिले MCB का हिस्सा होगा सुदूर वनांचल

कोरिया / लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत बड़ी विसंगतियों का जन्म होता है जब किसी क्षेत्र के लिए विचारवान नेतृत्वकर्ता ना हो। यह नीतिगत कथन कोरिया जिला मुख्यालय के साथ जितना लागू होता है उससे कंही ज्यादा लागू होता है भरतपुर विकासखंड के भविष्य के लिए। आप जानकर हैरान हो सकते हैं कि यह कैसा गणित है। इसे जानने के लिए आपको कोरिया जिले के गठन में शामिल रहे जनपदों या कहें विकासखण्डों की भौगोलिक स्थिति को विस्तार से समझने की जरूरत होगी।

कोरिया जिले का 1998 में जब गठन किया गया था तब मवई नदी के किनारे से तत्कालीन सरगुजा जिले के सबसे दूरस्थ वनांचल भरतपुर को कोरिया के हिस्से में दिया गया। तब भरतपुर ऐसा विकासखण्ड होता था जन्हा के अधिकारियों को सरगुजा जिले में मीटिंग में शामिल होने के लिए पहले शहडोल जाना पड़ता था फिर वँहा से मनेन्द्रगढ़ होते हुए वह सरगुजा पँहुचते थे। सन 1998 में जब कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर में बना तो भरतपुर वासियों के लिए यह दूरी मात्र 150 किलोमीटर ही रह गई। गत 15अगस्त को वर्तमान सरकार के एकमात्र भावनात्मक निर्णय ने कोरिया का ताना बाना ही उधेड़ दिया। विसंगतियों को साथ लेकर जन्मे कोरिया के विभाजन में फिर वही दोहराया गया।

जिले में संसदीय चुनाव में लम्बी पराजय झेलने वाले क्षेत्रीय क्षत्रप नेता ने मनेन्द्रगढ़ के पृथक गठन की सहमति फिर घोषणा देकर रही सही गत पूरी कर दी। यदि नीतिगत पहलुओं पर विचार करें तो आप देखेंगे कि यह एक ऐसा विभाजन है जो सिर्फ मनेन्द्रगढ़ शहर या कहें विकासखण्ड के लिए ही बेहतरीन है। बाकी विकासखण्ड खड़गंवा के लिए तो सांप छछुंदर की स्थिति बन गई है। उनके लिए ऐसी स्थिति बन गई है कि आधी छोड़ सारी को धावै, सारी मिले न आधी पावै। चिरमिरी में वहां स्थानीय जनप्रतिनिधियों को छोड़कर बाकी लोगों के समर्थन से चल रहा जन आंदोलन भी इसी का परिणाम है। इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा नुकसान भरतपुर क्षेत्र का होगा। वह सुदूर इलाका जो कल कोटाडोल,केल्हारी और भरतपुर को मिलाकर एक छोटा जिला बन सकता था विकास की गति से जुड़ सकता था, वह उज्जवल भविष्य की सम्भावना पूरी तरह से दफ़्न हो गई। साथ ही दफ़्न हो गई उसके विकास की तमाम राहें जो उसे एक अलग अस्तित्व दे सकती थीं। कोरिया के सुदूर क्षेत्र में बसे इस इलाके के लिए मनेंद्रगढ़ और बैकुंठपुर का अंतर मात्र 35,40 किलोमीटर ही है परंतु वह अब सम्भावना से विहीन हो चुका है। हो सकता है कि यह तथ्य भरतपुर की जनता,कोटाडोल,केल्हारी की जनता के समझ से परे हो परन्तु एक अंधकार भरे भविष्य का आधार जरूर तय हो चुका होगा।

फ़िलहाल यंहा की जनता उन तमाशबीन में जरूर शामिल है जो नए जिले के गठन और उसके लिए रचाए जा रहे मंचों, फ्लेक्स और बैनर तले खुशियों का स्वाद ले रहे हैं।

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