Vaastu Shaastra । हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य हो कलाई पर मौली या कलावा बांधा जाता है। इसे रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही चली आ रही है, पौराणिक कथा के अनुसार, असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। तो आइए जानते है इसके नियम के बारे में।
बता दें कि हम सभी कलावा बांधने के बाद उसे निकालना भूल जाते हैं और वो लंबे समय तक हाथ में बंधा रह जाता है। इस तरह वो कलावा हमें अपनी ऊर्जा देना बंद कर देता है। इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि हाथ में कलावा सिर्फ 21 दिन के लिए बांधना चाहिए। 21 दिन इसलिए क्योंकि अमूमन तौर पर इतने दिन में कलावे का रंग उतरने लगता है और कलावा कभी भी उतरे हुए रंग का नहीं पहनना चाहिए। रंग उतरता कलावा बांधना अशुभ माना जाता है।
इसलिए इसे उतार देना ही उचित होता है। 21 दिनों के बाद फिर किसी अच्छे मुहुर्त में हाथ पर कलावा बंधवा सकते हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि कलावा जब भी हाथ से उतारा जाता है तो वह आपके भीतर और आपके आसपास की नकारात्मकता को लेकर ही उतरता है। इसलिए उस कलावे को दोबारा नहीं पहनना चाहिए। हाथ से उतारा हुआ कलावा किसी बहती नदी में प्रवाहित कर देना शुभ होता है।
Vaastu Shaastra : मौली या कलावा बांधने के नियम-
1. पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए।
2. विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है।
3. जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हैं उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए।
4. कलावा बंधवाते समय दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
5. मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस रक्षासूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए।