Monday, June 30, 2025
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सुकमा में नक्सलियों ने वार्ता के लिए दिया युद्धविराम का प्रस्ताव, लेकिन पत्र की भाषा पर उठे सवाल

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पत्र में उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का किया धन्यवाद, एक महीने के लिए ऑपरेशन रोकने की अपील; कुछ लोगों ने पत्र की असलीयत पर जताया संदेह

सुकमा, छत्तीसगढ़।
राज्य के सुकमा ज़िले से एक बड़ी और संभावित रूप से ऐतिहासिक खबर सामने आई है। नक्सलियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता की पहल करते हुए एक महीने के युद्धविराम का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव नक्सलियों के उत्तर पश्चिम सब ज़ोनल ब्यूरो के प्रभारी ‘रुपेश’ द्वारा एक पत्र के ज़रिए सामने आया है, जिसमें उन्होंने सरकार विशेषकर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा की प्रतिक्रिया का आभार व्यक्त किया है।

हालांकि इस पत्र को लेकर अब कई सवाल भी उठने लगे हैं। स्थानीय स्तर पर कुछ लोगों ने इसकी भाषा और प्रस्तुति पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि यह नक्सलियों की पारंपरिक शैली से मेल नहीं खाता। दबी जुबान में यह भी चर्चा है कि कहीं यह पत्र सरकार द्वारा स्वयं तैयार तो नहीं किया गया?

वार्ता की दिशा में बढ़ा कदम
पत्र में नक्सली नेता रूपेश ने लिखा, “मेरे पहले बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का धन्यवाद। मेरी सुरक्षा की गारंटी देते हुए इस कोशिश को आगे बढ़ाने की अनुमति देने के लिए भी आभार।”

रूपेश ने एक महीने तक सशस्त्र बलों के अभियानों को स्थगित करने की अपील करते हुए कहा कि उन्हें वार्ता में भागीदारी के लिए अपने वरिष्ठ साथियों से मिलना ज़रूरी है।

राजनीतिक विवादों से दूरी
पत्र में रूपेश ने यह भी कहा कि भाजपा और कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा उनके पहले बयान पर की गई टिप्पणियों पर वह फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते। “अभी मैं एक विषय पर ध्यान दे रहा हूँ,” उन्होंने लिखा।

पत्र की भाषा पर उठते सवाल
स्थानीय स्तर पर आम लोगों और कुछ विश्लेषकों के बीच यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि नक्सलियों की ओर से भेजे गए पत्र की भाषा और शब्दावली असामान्य रूप से “शालीन” और रणनीतिक लग रही है। आमतौर पर नक्सलियों के पत्रों में तीखी आलोचना, विचारधारात्मक आक्रामकता और आह्वान के शब्द होते हैं। इस बार यह पत्र अपेक्षाकृत संयमित और संवादोन्मुख दिख रहा है।

इस संदर्भ में कुछ लोगों ने यह संदेह भी जताया है कि क्या यह पत्र वास्तव में नक्सलियों की ओर से ही आया है या फिर यह सरकार की कोई रणनीति है। हालांकि अभी तक इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है, इसलिए अफवाहों से बचने की सलाह दी जा रही है।

सरकार के लिए अवसर और चुनौती दोनों
यदि यह प्रस्ताव ईमानदारी से आया है तो यह राज्य और देश के लिए नक्सल समस्या को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा अवसर हो सकता है। लेकिन सरकार के लिए यह भी जरूरी है कि वह सावधानी बरते और भरोसे को जांचने की प्रक्रिया पारदर्शिता से पूरी करे।

जनता से संयम की अपील
ऐसे संवेदनशील समय में विशेषज्ञों और प्रशासन की ओर से जनता से अपील की गई है कि वे किसी भी अफवाह पर विश्वास न करें और शांति प्रक्रिया को सफल बनाने में सहयोग करें।


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