रायपुर से विशेष रिपोर्ट
जहाँ एक ओर डी.के.एस. सुपर स्पेशलिटी अस्पताल इलाज का केंद्र है, वहीं ठीक सामने मानव अधिकार आयोग का दफ्तर—जिसका मकसद लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है—और दोनों के बीच बेताज बादशाह बनकर पसरा है: मेडिकल कचरा!
जी हाँ, राजधानी के बीचोंबीच, वहाँ जहाँ सफाई और सतर्कता की सबसे ज्यादा उम्मीद की जाती है, वहीं ज़मीन पर फैली है सुइयों, पट्टियों, दवाओं के खाली रैपर और जैविक अवशेषों की एक खतरनाक चादर।
यह कोई आम कचरा नहीं, यह है वो जहरीला कचरा जो बीमारियों को न्यौता देता है, जानवरों के माध्यम से संक्रमण फैलाता है और साफ हवा को भी संदेह की नज़र से देखता है।
हक़ीकत ये है कि—
जहाँ इलाज होना चाहिए, वहाँ बीमारी का ठिकाना बन रहा है। और जहाँ मानव अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए, वहाँ इंसानों की सेहत से खिलवाड़ हो रहा है।
स्थानीय निवासी हैरान हैं—क्या ये लापरवाही है या नई “स्वास्थ्य नीति”? राहगीरों को डर है कि कहीं हवा में घुला ये ज़हर, साँसों से होते हुए उनकी सेहत को न निगल जाए।
प्रशासनिक चुप्पी भी कम खतरनाक नहीं।
ऐसे में सवाल उठता है—क्या जिम्मेदार महकमे तब जागेंगे जब ये कचरा खुद चलकर दफ्तरों में घुस आएगा?
अगर यह दृश्य राजधानी में संभव है, तो प्रदेश के अन्य हिस्सों की हालत का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं। समय की मांग है कि इस ज़हरीले ढेर को तुरंत हटाया जाए, अन्यथा कल को इसे “नया लैंडमार्क” घोषित करना पड़ सकता है—‘बायोहज़र्ड चौक, रायपुर’!