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डोंगरगढ़ में पकड़े तेंदुए को कहां छोड़ा? RTI में पूछा सवाल, वन विभाग ने जानकारी देने से किया इनकार


वन विभाग की गोपनीयता पर उठे सवाल, कार्यकर्ता बोले – ‘जानवर को छोड़ने की जगह बताना कैसे भारत की अखंडता को खतरा?’

रायपुर, 4 जुलाई।
छत्तीसगढ़ वन विभाग के एक हालिया निर्णय ने वन्यजीव संरक्षण और पारदर्शिता के मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी है। डोंगरगढ़ के सुदर्शन पहाड़ी क्षेत्र से 7 मई को पकड़े गए तेंदुए को कहां छोड़ा गया — जब यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई तो राजनांदगांव वनमंडल ने भारत की प्रभुता, अखंडता और सुरक्षा पर खतरा बताते हुए सूचना देने से इनकार कर दिया।

वनमंडल अधिकारी और जन सूचना अधिकारी ने RTI एक्ट की धारा 8(1)(a) का हवाला देते हुए कहा कि वन्यप्राणी की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए यह जानकारी साझा नहीं की जा सकती। यह धारा सामान्यतः राष्ट्र की सुरक्षा, विदेश संबंध या वैज्ञानिक-आर्थिक हितों से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को सार्वजनिक करने से रोकती है।

लेकिन इस मामले में एक वन्यजीव को कहां छोड़ा गया — यह जानकारी गोपनीय बताकर इनकार करने को लेकर RTI कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई है।


क्या है मामला?

7 मई को डोंगरगढ़ के प्रसिद्ध सुदर्शन पहाड़ी इलाके में एक तेंदुआ देखा गया, जो पांच दिन तक वहीं आसपास मौजूद रहा। किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाए बिना घूमता रहा। लेकिन वन विभाग ने उसे “हिंसक वन्यप्राणी” घोषित कर पकड़ने की अनुमति मांगी और उसे पकड़ लिया गया।

जानकारी के लिए RTI कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने यह सवाल पूछा कि उस तेंदुए को कहां छोड़ा गया? जवाब में कहा गया कि यह सूचना नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे भारत की प्रभुता और अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

सवाल ये उठता है कि क्या एक तेंदुए को कहां छोड़ा गया, यह बताने से भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है?


गाइडलाइन का उल्लंघन?

भारत सरकार के वन्यजीव संरक्षण दिशा-निर्देशों के मुताबिक, किसी भी तेंदुए को उसके रहवास क्षेत्र से अधिकतम 10 किलोमीटर के भीतर छोड़ने की सिफारिश की गई है। यह इसीलिए ताकि तेंदुआ अपने भूगोल, शिकार, पानी के स्रोत और अन्य सामाजिक संकेतों को पहचान सके।

लेकिन छत्तीसगढ़ वन विभाग का रिकॉर्ड बताता है कि वह अकसर तेंदुओं को 200-300 किलोमीटर दूर ले जाकर छोड़ता है। उदाहरण के लिए गरियाबंद से पकड़ा तेंदुआ अचानकमार्ग टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया। इससे तेंदुए पर मानसिक दबाव बढ़ता है, वह गुस्से में आक्रामक हो सकता है या दूसरे इलाके के तेंदुए से संघर्ष में मारा जा सकता है।


हिंसक घोषित करने का भी आधार नहीं

एक और गंभीर सवाल यह है कि तेंदुए को हिंसक वन्यप्राणी कहकर पकड़ा गया, जबकि न तो कोई हमला हुआ, न ही कोई जानमाल की हानि। RTI में जब यह पूछा गया कि तेंदुए को हिंसक घोषित करने का आधार क्या था, तो विभाग ने लिखित रूप में जवाब दिया कि ऐसे कोई दस्तावेज उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं।


RTI कार्यकर्ता ने की प्रथम अपील

नितिन सिंघवी ने इस पूरे मामले को लेकर सूचना आयोग में प्रथम अपील दायर कर दी है। उनका कहना है कि यदि तेंदुए को कहां छोड़ा गया — यह जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की जाएगी, तो वन्यजीव संरक्षण में पारदर्शिता कैसे आएगी?

उन्होंने कहा —

वन विभाग की भूमिका केवल जानवरों को पकड़ना और छोड़ना नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और पारदर्शिता को बनाए रखना भी है। यदि सवाल पूछने पर भारत की अखंडता पर खतरा बताकर सूचना से इनकार किया जाएगा, तो RTI कानून का क्या औचित्य रह जाएगा?




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