नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शासन के सर्वोच्च संस्थानों के नाम बदलने का ऐतिहासिक फैसला ले लिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के नए परिसर का नाम अब सेवा तीर्थ होगा। इसके साथ ही केंद्रीय सचिवालय को कर्तव्य भवन और देशभर के राजभवनों को लोकभवन के नाम से जाना जाएगा। सरकार का कहना है कि यह बदलाव प्रशासनिक नहीं, बल्कि देश की शासन-संस्कृति को शक्ति के केंद्र से सेवा के केंद्र में बदलने का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि भारत अब सत्ता नहीं, सेवा; अधिकार नहीं, कर्तव्य की ओर बढ़ रहा है। नए नाम उसी जनभावना और लोकतांत्रिक विचारधारा को दर्शाते हैं। यह कदम उस प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें शासन–व्यवस्था को औपनिवेशिक प्रतीकों, शाही शब्दावली और शक्ति-प्रधान पहचान से हटाकर जनता-केंद्रित दिशा में ले जाया जा रहा है।
इस निर्णय के बाद देश के राज्यपाल आवासों और राजभवन परिसरों में भी नाम परिवर्तन लागू किया जाएगा। कई राज्यों ने प्रक्रिया शुरू कर दी है और केंद्र जल्द ही राज्यों के लिए मानक दिशा-निर्देश जारी करेगा। सरकार के अनुसार नए नाम उन संस्थानों को यह संदेश देते हैं कि वे अधिकार का स्थल नहीं बल्कि जनसेवा और लोककल्याण की जिम्मेदारी निभाने का केंद्र हैं।
इधर राजनीतिक गलियारों में इस फैसले को लेकर हलचल तेज है। सत्तारूढ़ दल ने इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सुधार बताते हुए स्वागत किया है, जबकि विपक्ष ने इसे प्रतीकात्मक कदम करार देते हुए कहा है कि वास्तविक सुधार नाम के बजाय प्रशासनिक व्यवस्था में होना चाहिए। हालांकि इस फैसले ने देश की सरकारी विरासत और पहचान में बड़ा बदलाव तो दर्ज करा ही दिया है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह बदलाव हाल के वर्षों में हुए नाम परिवर्तनों की श्रृंखला का नया अध्याय है। इससे पहले राजपथ का नाम कर्तव्य पथ और रेस कोर्स रोड का नाम लोक कल्याण मार्ग रखा गया था। अब सेवा तीर्थ, कर्तव्य भवन और लोकभवन जैसे नाम शासन व्यवस्था में एक नई विचारधारा को स्थापित करते दिखाई दे रहे हैं।
सरकार के सूत्रों के अनुसार आने वाले समय में देश के कई सरकारी परिसरों, भवनों और संस्थानों के नामों की भी विस्तृत समीक्षा की जा सकती है। प्रशासनिक तंत्र में कार्य-संस्कृति को और अधिक जनसेवा और जवाबदेही की दिशा में ले जाने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
