रायपुर। भारत के राष्ट्रीय जागरण का प्रतीक गीत ‘वन्दे मातरम्’ अपने गौरवशाली 150 वर्ष पूरे कर रहा है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित यह गीत न केवल साहित्य का अनमोल हिस्सा है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा भी बना। उस दौर में जब अंग्रेजी हुकूमत भारतीय अस्मिता को कुचलने पर आमादा थी, बंकिमचंद्र ने इस गीत के माध्यम से जन-जन में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित की।
कब, क्यों और कैसे रचा गया ‘वन्दे मातरम्’
साल 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने उपन्यास ‘आनंदमठ’ लिखते समय ‘वन्दे मातरम्’ की रचना की। उपन्यास में यह गीत भारत माता की वंदना के रूप में आता है। उस समय अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध खुलकर कुछ कहना असंभव था, इसलिए उन्होंने मातृभूमि की पूजा को प्रतीक बनाकर देशभक्ति का स्वर गूंजाया।
‘वन्दे मातरम्’ शब्द का अर्थ है — “मां, मैं तुम्हें नमन करता हूं।”
यह गीत बंगाल से निकलकर पूरे भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा बन गया।
स्वतंत्रता संग्राम में ‘वन्दे मातरम्’ की भूमिका
1905 में बंगाल विभाजन के विरोध के दौरान यह गीत क्रांतिकारियों का नारा बन गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे पहली बार स्वरबद्ध कर गाया था। बाद में लाला लाजपत राय, अरविंदो घोष, बाल गंगाधर तिलक और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं ने इसे राष्ट्र की आत्मा बताया।
क्रांतिकारियों के मुख से जब “वन्दे मातरम्” की गूंज उठती थी, तो अंग्रेज़ी शासन के दिल दहल जाते थे। यह गीत ब्रिटिश काल में कई जगहों पर प्रतिबंधित भी किया गया।
संविधान और राष्ट्रगीत का दर्जा
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा में बहस के दौरान ‘वन्दे मातरम्’ को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया, जबकि ‘जन गण मन’ को राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया।
संविधान सभा में पंडित नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं ने इसे भारत की एकता और त्याग का प्रतीक बताया।
150वीं वर्षगांठ पर विशेष कार्यक्रम
इस वर्ष ‘वन्दे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी ने 7 नवंबर से 26 नवंबर (संविधान दिवस) तक विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित करने की घोषणा की है।
इन कार्यक्रमों में गीत, प्रभात फेरी, चित्र प्रदर्शनी, कवि सम्मेलन और युवाओं के बीच जनजागरण अभियान शामिल होंगे।
भाजपा नेताओं का कहना है कि — “वन्दे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा और संस्कृति का प्रतीक है।”
