हमेशा से ही विभिन्न धार्मिक ग्रंथ विज्ञान को चुनौती देते आ रहे हैं। ग्रंथों में लिखे तथ्य आज भी लोगों को चौंका देते हैं। हम आपको आज हनुमान चालीसा में वर्णित एक ऐसा ही तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं, जो की धर्म ग्रंथों की महिमा के बारे में बताता है।
17 वीं शताब्दी में वैज्ञानिक जियोवानी कैसिनी और जीन रिकर ने सूरज और धरती के बीच की दूरी का आंकलन किया था। जिसमें उन्होंने धरती और सूर्य की दूरी 149.6 मिलियन किलोमीटर यानी 14,96,00,000 किलोमीटर बताई थी।
हनुमान चालीसा 16वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखी गई थी। इन चालीस चौपाइयों में बजरंग बली का पूरा वर्णन है। हनुमान चालीसा की 18 वीं चौपाई में धरती और सूरज की बीच की दूरी का वर्णन किया गया है।
हनुमान चालीसा की 18वी चौपाई –
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
हिन्दू वैदिक साहित्य के हिसाब से 1 जुग यानि 12000, सहस्र यानि 1000, 1 योजन यानि 8 मील।
अगर गुणा किया जाए तो –
1200*1000*8 = 96,000,000 मील,
1 मील = 1.6 कि.मी.
96,000,000*1.6 = 15,36,00,000 कि.मी.
इस चौपाई का अर्थ है, 96,000,000 मील की दूरी पर सूरज को मीठा फल समझकर मारुती नंदन यानि हनुमानजी उसे निगल गए थे। इस चौपाई से मिली सूरज और धरती के बीच की दूरी काफी हद तक वैज्ञानिक आंकलन से मिलती है। इससे यह बात तो साफ है कि धर्म ग्रंथों में सदियों पहले ही दुनिया की कई ख़ास बातों-रहस्यों का वर्णन कर दिया गया हैं।