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सूचना आयोग को हल्के में लेना पड़ा महंगा, DFO पंकज राजपूत को नोटिस



शासन ने अखिल भारतीय सेवा अनुशासन नियमों के तहत कार्यवाही की दी चेतावनी

रायपुर, 25 जुलाई।
छत्तीसगढ़ में सूचना आयोग के आदेशों की अनदेखी एक आईएफएस अधिकारी को भारी पड़ गई। खैरागढ़ वनमंडल में पदस्थ डीएफओ पंकज राजपूत को शासन ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उन पर अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के उल्लंघन का आरोप है और उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया अब प्रारंभ हो चुकी है।

मंत्रालय वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने उन्हें 15 दिन में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। मामला वर्ष 2020 से संबंधित है जब रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने महासमुंद वनमंडल से हाथी हमले से जुड़ी जनहानि व संपत्ति नुकसान की सूचना मांगी थी।

सूचना छिपाने की कोशिश

तत्कालीन डीएफओ मयंक पांडे ने जानकारी देने के बजाय कहा कि दस्तावेजों की संख्या बहुत अधिक (करीब 94,928 पेज) है, इसलिए आवेदक आकर स्वयं अवलोकन कर ले। सूचना आयोग ने इसे अस्वीकार करते हुए 15 फरवरी 2021 को स्पष्ट आदेश दिया कि मांगी गई जानकारी निशुल्क उपलब्ध कराई जाए। साथ ही दस्तावेजों की लागत वसूली की कार्रवाई दोषी अधिकारी से करने के निर्देश दिए गए।

पंकज राजपूत ने टालते रहे कार्रवाई

इसके बाद महासमुंद में नए डीएफओ के रूप में पदस्थ हुए पंकज राजपूत ने आयोग को बताया कि वे हाईकोर्ट में अपील करने की प्रक्रिया में हैं और 15 दिन का समय मांगा। लेकिन 17 सितंबर 2021 और 18 अप्रैल 2022 की दोनों सुनवाइयों में भी स्थगन आदेश आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।

इस लापरवाही को गंभीर मानते हुए सूचना आयोग ने 3 अगस्त 2022 को शासन से अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की थी। लेकिन तीन वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

तीन साल बाद शासन ने भेजा नोटिस

वर्ष 2025 में आयोग ने शासन से अनुपालन प्रतिवेदन की मांग की। इसके बाद वन विभाग ने 11 जुलाई 2025 को डीएफओ पंकज राजपूत को नोटिस जारी करते हुए लिखा कि, “आपके द्वारा अपने कर्तव्यों के निष्पादन में लापरवाही बरती गई, जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3 का उल्लंघन है।”

नोटिस में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो उनके विरुद्ध अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1969 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी।

सूचना आयोग की सख्ती का असर

सूचना अधिकार अधिनियम के तहत यह मामला शासन-प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाता है। आयोग के आदेशों की उपेक्षा करने वाले अधिकारियों पर अब वास्तविक कार्रवाई की शुरुआत से यह संदेश स्पष्ट है कि आयोग को हल्के में लेना अब भारी पड़ सकता है।

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