अमन अग्रवाल की कलम / न्यायालय द्वारा घोषित अभियुक्त लिपिक कर्मचारी धनसिंह राठौर को प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण , न्यायालय के आदेश की अवहेलना की जा रही है।
मामला गौरेला जनपद पंचायत में लिपिक पर विगत 30 वर्षों से पदस्थ धनसिंह राठौर जिसके ऊपर वनविभाग में दो दो बार इमारती एवं पुर्णतः प्रतिबंधित लकड़ियों की तस्करी का मामला दर्ज किया गया एवं संबंधित द्वारा इसका जुर्माना भी पटाया गया है । साथ ही लकड़ी चोरी प्रकरण में विगत एक वर्ष तक कार्यालय से फरार रहने के बाद फर्जी चिकित्सक प्रमाण पत्र (बीएमओ द्वारा जारी नही किया गया) प्रस्तुत कर बिना बहाली के वेतन स्वीकृत कराकर फरार अवधि का लगभग रुपया पांच लाख राशि वेतन के रूप में प्राप्त किया गया और शासन को आर्थिक छति पहुँचाई गई । जिसके विरुद्ध में बाला कश्यप (तेंदुमुड़ा) द्वारा माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका दायर कर अपील किया गया कि संबधित के विरुद्ध पद से पृथक कर संबधित के खिलाफ उचित कार्यवाही किया जावे ।
प्रस्तुत याचिका में सचिव से लेकर जिला पंचायत सीओ को पक्षकार बनाया गया उपरांत माननीय न्यायालय द्वारा संबधित विभाग के अधिकारियों को एक माह के भीतर विधिसबंत कार्यवाही कर अवगत कराने के लिए निर्देशित किया गया मगर वही माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का खुला मखौल इन प्रशानिक अधिकारियों द्वारा उड़ाया जा रहा है। जिन्हें न तो कानून का डर है ना ही न्यायालय का ।
वही विगत वर्ष से कार्यवाही नही किये जाने के कारण बाला कश्यप द्वारा 23.08.2019 को माननीय न्यायालय के समक्ष पुनः अवमानना याचिका दायर किया गया ।
वही गौर करने वाली बात यह कि क्या इस पुनरयाचिका को दरकिनार कर प्रशासन पूर्व की तरह मूकबधिर हो जाएगा? इन सब के बाद भी संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही न किया जाना एवं उक्त व्यक्ति को केंद्र शासन की महत्वपूर्ण योजना (SBM) स्वक्ष भारत मिशन में पदस्त कार्य संपादित करवाया जाना जिससे साफ परिलाक्षित होता है कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कैसे माननीय न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासन न्यायालय के आदेश को भी दरकिनार कर संबधित लिपिक कर्मचारी को खुला संरक्षण दिया गया है । जिस व्यक्ति को न्यायालय के आदेश अनुसार कब का पद से प्रथक कर कार्यवाही की जानी चाहिए थी उसे ही भारत सरकार एवं नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वक्ष भारत मिशन का प्रभारी लिपिक बनाया जाना शासन के प्रशासन उदासीनता एवं संबधित अभियुक्त के सहयोग को दर्शाता है जिस पर विधिवत जांच टीम गठित कर पदस्त अवधि के कार्य की जांच कराई जानी चाहिए ।
वही प्रशासन से एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि जिस व्यक्ति को माननीय न्यायालय द्वारा अभियुक्त घोषित किया गया है उससे शासकीय कार्यो का संपादन करवाया जाना एवं पद पर बने रहना उचित है क्या?

