कर्मचारियों के बाद सबसे ज्यादा नुकसान में मनरेगा के पंजीकृत श्रमिक
पिछले साल अप्रैल में 5 करोड़ से ज्यादा कार्य दिवस देने वाले छत्तीसगढ़ में हड़ताल से आंकड़ा 50 हजार नही पंहुचा
रायपुर / एक कहावत है कि दो हाथियों की लड़ाई में नुकसान घास का, जी हां सुनते हैं कि जब दो राजनेताओं की आपसी प्रतिद्वंद्विता अपने चरम पर हो तो उसका सीधा असर नीचे के लोगों पर पड़ता है। ऐसा ही असर इन दिनों छत्तीसगढ़ के मनरेगा योजना में कार्यरत कर्मचारियों की हड़ताल पर हो रहा है। यदि हकीकत का आंकलन करें तो सबसे ज्यादा नुकसान इस योजना के लाभार्थियों को यानी 1करोड़ से ज्यादा पंजीकृत श्रमिकों को हो रहा है।
यह पूरा मामला कुछ ऐसा है कि सत्ता में आने के पहले मनरेगा कर्मियों के आंदोलन स्थल पर कांग्रेस के नेताओं ने वायदे किए की सत्ता में आते ही हम सभी को नियमित कर देंगे। बस सरकार बनी और वायदे, वायदों में खो गए।
तीन साल बीत गए तो कर्मचारियों ने चिट्ठी लिखकर पूछा पर सरकार तो सरकार ठहरी। बस 4अप्रैल से सारा धैर्य समाप्त हो गया तो कर्मचारियों ने कलम रख दी। सत्याग्रह करते हुए 390 किलोमीटर की दूरी भी पैदल नाप दी। परन्तु सरकार यह तय कर चुकी हैं कि वायदा किया था तो कौन सा पूरा ही करना था। अब इन आंदोलनरत साथियों के साथ बड़ी दिक्कत यह हुई है कि दोनों नेताओं को लगता है कि यह हड़ताल हमारी किरकिरी कराने के लिए प्रतिद्वंद्वी ने शुरू कराई है।
इस पूरे मामले में नौकरशाही का अड़ियल रुख अलग फांस अटकाए हुए है। अब अगर हकीकत का आंकलन करें तो हड़ताल का सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ गया है। इस योजना के अंतर्गत पूरे प्रदेश में 43 लाख से ज्यादा पंजीकृत परिवार के कुल 1करोड़ से ज्यादा महिला पुरुष इस योजना के लाभार्थियों में शामिल हैं। पिछले साल अप्रैल माह में 5 करोड़ से ज्यादा मानव दिवस का सृजन किया गया था। मतलब यदि रुपयों का आँकलन करें तो लगभग 1हजार करोड़ रुपए की मजदूरी श्रमिकों को प्राप्त हुई। लेकिन इस बार सरकार के वायदे को पूरा कराने के लिए सड़क पर उतरे कर्मचारियों के कारण मात्र 49 हजार 463 मानव दिवस ही सृजित हुए।

आनलाइन रिकार्ड में देखें तो साफ है कि केवल भ्रम फैलाने के लिए मनरेगा योजना के मस्टररोल जारी किए जा रहे हैं और इनसे फायदे की जगह नुकसान हो सकता है। बड़ी संख्या में निकाले गए मस्टररोल सही समय पर भरे नही जा रहे हैं और योजना के प्रावधान के अनुसार न तो काम की फाइलें बन रही हैं, न तो जिओ टैग्गिंग हो रही है और न ही आनलाइन हाजिरी भरी जा रही है। हड़ताल के कारण यह काम भी कितना धरातल पर हुआ है अलग जांच का विषय है।
बहरहाल अपने अड़ियल रवैये के कारण पंचायत विभाग और मनरेगा से जुड़े अफसरों का अहम सकारात्मक परिणाम भी नही होने दे रहा है और संवेदनहीन सरकार एक माह से कान में तेल डालकर सोई हुई है। आर पार के मूड में आंदोलन कर रहे मनरेगाकर्मियों का उत्साह भरी गर्मी में भी एक माह से पूरे उफान पर है।
कितनी गज्जब है मानदेय राशि….
जी हां, मनरेगा योजना की रीढ़ कहे जाने वाले ग्राम रोजगार सहायक इस बार जबरजस्त तरीक़े से आंदोलन पर हैं। इनको सरकार केवल 5 हजार रुपए महीने वेतन देती है और पूरे तीस दिन लग्भग सारे योजनाओं के काम लेती है। मजेदार बात यह भी है कि रोजगार सहायक को मिलने वाला वेतन एक मनरेगा के मजदूर से भी कम है क्योंकि 204 रुपए की मजदूरी का हिसाब एक माह में 6120 रुपए होता है।
