छत्तीसगढ़ के 10 नगर निगमों में हुए महापौर चुनाव में कांग्रेस का ऐसा सफाया हुआ कि अब हर तरफ सिर्फ हार के कारणों पर ही मंथन चल रहा है। 2019-20 में जहां कांग्रेस के मेयर काबिज थे, इस बार वहां भाजपा ने झंडा गाड़ दिया। चुनाव से पहले ही चर्चाएं थीं कि भाजपा आठ निगम तो निकाल ही लेगी, लेकिन अम्बिकापुर और चिरमिरी को लेकर संशय था। नतीजे आए तो इन दोनों जगहों पर भी भाजपा ने बाज़ी मार ली।
राजनीतिक पंडित इस हार की दो मुख्य वजहें गिना रहे हैं— अंडर करंट और एंटी-इंकम्बेंसी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जब 68 सीटें जीतकर भाजपा को 15 पर समेट दिया था, तब भाजपा की हार के पीछे यही कारण थे। अब वही इतिहास खुद को दोहरा रहा है, बस किरदार बदल गए हैं!
दूसरी बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि पिछली कांग्रेस सरकार ने महापौर चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराए थे, यानी जनता नहीं बल्कि पार्षद महापौर चुनते थे। इसका फायदा उठाकर कुछ नेताओं ने “अपने आदमी” बिठाने की कोशिश की, लेकिन जनता को शायद यह पसंद नहीं आया। इस बार जब जनता को सीधा वोट डालने का मौका मिला, तो उसने कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
टिकट की रस्साकशी: “तुम क्या जानो रमेश बाबू!”
रायपुर नगर निगम चुनाव में टिकट बंटवारे ने कईयों के अरमानों पर पानी फेर दिया। राजा तालाब इलाके में एक नेता की टिकट पक्की मानी जा रही थी, लेकिन ऐन मौके पर पासा पलट गया। इसकी वजह बनीं एक पूर्व महिला सांसद, जिन्होंने धमकी दे डाली— “अगर मेरे समर्थक की टिकट कटी, तो इस्तीफ़ा सीधे दिल्ली जाकर दूंगी!” टिकट बांटने वालों ने भी सोचा, “मरते क्या न करते,” और टिकट उनकी पसंद के नेता को दे दी।
पर असली ड्रामा तो इसके बाद शुरू हुआ! टिकट से वंचित नेता ने निर्दलीय ताल ठोक दी। चुनाव हुआ, नतीजे आए— और बाज़ी पलट गई! निर्दलीय खड़े नेता जीत गए और पूर्व सांसद के समर्थक को हार का सामना करना पड़ा। इतना बड़ा उलटफेर हुआ कि एक पूर्व विधायक तो खुशी में भांगड़ा तक कर बैठे!
गिदवानी ने ढेबर को दी पटखनी, भाजपा की बल्ले-बल्ले!
रायपुर के पं. भगवती चरण शुक्ल वार्ड में बड़ा धमाका हुआ! कांग्रेस के पूर्व महापौर एजाज़ ढेबर यहां से पार्षद चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा ने उनके खिलाफ़ अमर गिदवानी को उतारा। पहले तो लगा कि ढेबर को वॉकओवर मिल जाएगा, लेकिन भाजपा ने ऐसा दांव खेला कि पूरा खेल ही बदल गया।
भाजपा प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन ने कमान संभाली और अपनी टीम को साफ आदेश दिया— “इस सीट को हर हाल में जिताना है!” और वही हुआ, गिदवानी जीत गए, ढेबर हार गए! दिलचस्प बात यह है कि अमर गिदवानी पहले कांग्रेस और जोगी कांग्रेस में रह चुके थे, लेकिन अब भाजपा से खड़े होकर इतिहास रच दिया।
निगम चुनावों ने कईयों के सपने तोड़े, कईयों को सत्ता तक पहुंचाया और बहुतों के सियासी करियर को खतरे में डाल दिया। अब देखना यह होगा कि इस हार के बाद कांग्रेस अपनी सियासी रणनीति में क्या बदलाव करती है, और भाजपा अपनी इस जीत को 2028 तक कैसे भुनाती है!”
