नई दिल्ली / पिछले वर्ष आज के ही दिन यानी आठ नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोटों को अमान्य ठहराते हुए नोटबंदी का ऐलान किया था। बीजेपी और केंद्र सरकार के सदस्य नोटबंदी देशहित में बताते हैं तो विपक्षी दल इसे देश का काला फैसला ठहराते हैं। अगर एक आम नागरिक के नजरिए से देखें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि नोटबंदी आजाद भारत में लिया गया सबसे बड़ा आर्थिक फैसला है।

नोटबंदी को आज एक साल पुरे हुए तो और इस नोटबन्दी से क्या कुछ बदलाव हुए इस पर हम नजर डालते है।
** नोटबंदी के बाद बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में करीब एक प्रतिशत तक कमी आई है।
** नोटबंदी के बाद एक जनवरी को भारतीय स्टेट बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से धन की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर में 0.9 प्रतिशत कटौती की थी। इसके बाद दूसरे बैंकों ने भी ऐसा ही किया।
** नोटबंदी के दिन आठ नवंबर 2016 को बंद किये गये नोट की कुल राशि 15.44 लाख करोड़ रुपये थी। इनमें से 15.28 लाख करोड़ रुपये यानी 99 प्रतिशत धन बैंकों में पहुंच चुका है। इसके बाद अब करीब 16,000 करोड़ रुपये की राशि बैंकिंग तंत्र से बाहर रह चुकी है।
** कर्ज सस्ता हुआ है, इस दौरान कर्ज पर ब्याज दर में करीब एक प्रतिशत की कमी आई है।
** रिजर्व बैंक ने अक्टूबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरें ऊंची बनाये रखने के लिये बैंकों की कड़ी आलोचना की थी। केन्द्रीय बैंक ने तब कर्ज की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (एमसीएलआर) को लेकर भी चिंता जताई थी। उसने कहा कि इनकी वजह से मौद्रिक लेनदेन में कोई सुधार नहीं देखा गया है।
** प्रधानमंत्री कार्यालय ने नोटबंदी के फायदों में यह भी कहा कि इससे रीयल एस्टेट के दाम कम हुये हैं। इस दौरान देशभर में शहरी स्थानीय निकायों का राजस्व करीब तीन गुणा तक बढ़ गया। नोटबंदी के दौरान उपभोक्ताओं को उनके बकाये का भुगतान बंद किये गये नोटों में करने की अनुमति दी गई।
** उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकायों का राजस्व चार गुणा बढ़ गया जबकि मध्य प्रदेश और गुजरात के निकायों का राजस्व करीब पांच गुणा तक बढ़ गया।
** भुगतान के डिजिटल तरीके के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय ने आगे कहा कि अगस्त 2017 में डेबिट कार्ड के जरिये लेनदेन 50 प्रतिशत बढ़कर 26.55 करोड़ रुपये तक पहुंच गया जबकि एक साल पहले इसी माह में यह 13.05 प्रतिशत ही बढ़ा था। डिजिटल भुगतान का मूल्य भी इस दौरान 48 प्रतिशत बढ़कर 35,413 करोड़ रुपये हो गया।
** नोटबंदी के बाद काफी हद तक नक्सल और आतंकी हरकतों पर भी लगाम लग सके हैं।
** मौजूदा सरकार के पहले तीन साल के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र की औसत वृद्धि दर सिर्फ 1.8 प्रतिशत रही है। यह जबकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
:यूपीए: सरकार के दस साल के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र की औसत सालाना वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही थी।
